गणित का महत्व (Importance of Mathematics)

गणित का महत्व

गणित का महत्व (Importance of Mathematics):

गणित का महत्व (Importance of Mathematics): गणित एक ऐसा विषय है जो किसी न किसी रूप में हमारे दैनिक जीवन से जुड़ा है। शिक्षा, संस्कृति, रोजगार एवं व्यवसाय आदि क्षेत्रों से इसका घनिष्ठ संबंध है। आधुनिक युग में सभ्यता का आधार गणित ही है। मातृभाषा के अतिरिक्त ऐसा कोई विषय नहीं है जो दैनिक जीवन से इतना अधिक संबंधित हो। गणित को व्यापार का प्राण तथा विज्ञान का जन्मदाता माना जाता है।

गणित बालक को अपने जीविका कमाने के योग्य बनाने के साथ ही उसके ज्ञान में वृद्धि करता है और जीवन के विभिन्न कार्यों को सिखने एवं करने में सहायता प्रदान करता है। विद्यार्थियों का मानसिक विकास करके उनकी बुद्धि को प्रखर बनता है तथा विभिन्न चारित्रिक गुण विकसित कर चरित्र निर्माण में सहायता करता है। गणित शिक्षण के प्रमुख मूल्यों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

1. बौद्धिक मूल्य (Intellectual Value):

बौद्धिक विकास के लिए गणितीय शिक्षण का अत्यधिक महत्व है। पाठ्यक्रम का अन्य कोई विषय ऐसा नहीं है जो गणित की तरह छात्र के मस्तिष्क को क्रियाशील बनाता हो। गणित की प्रत्येक समस्या को हल करने के लिए मानसिक कार्य की आवश्यकता होती है। जैसे ही गणित की कोई समस्या बच्चों के समक्ष आती है, उसका मस्तिष्क उस समस्या को समझने तथा उसका समाधान करने के लिए क्रियाशील हो जाता है। गणित की प्रत्येक समस्या एक ऐसे क्रम से गुजरती है जो की एक रचनात्मक एवं सृजनात्मक प्रक्रिया के लिए आवश्यक है। इस प्रकार बच्चों की संपूर्ण मानसिक शक्तियों का विकास गणित पढ़ने से सरलता से हो जाता है। किसी भी समस्या का उचित हल ज्ञात करने की क्षमता का विकास गणित के अध्ययन से ही संभव है।

गणित के बौद्धिक मूल्य पर प्रकाश डालते हुए महान शिक्षा शास्त्री प्लेटो ने स्पष्ट किया है की- “गणित एक ऐसा विषय है जो मानसिक शक्तियों को प्रशिक्षित करने का अवसर प्रदान करता है। एक सुषुप्त आत्मा में चेतना और नवीन जागृति उत्पन्न करने का कौशल गणित ही प्रदान कर सकता है।”

प्रोफेसर शल्ट्ज महोदय के अनुसार- “गणित की शिक्षा प्राथमिक रूप से मानसिक शक्तियों को प्रशिक्षित करने के लिए दी जाती है। गणित के विभिन्न तथ्यों का ज्ञान देना इसके बाद ही आता है।”

गणित का अध्ययन करने से बच्चों को अपने सभी मानसिक शक्तियों को विकसित करने का पूर्ण अवसर मिलता है। गणित का अध्ययन बच्चों को अपनी निरीक्षण शक्ति, तर्क शक्ति, स्मरण शक्ति, एकाग्रता, मौलिकता, अन्वेषण शक्ति, विचार एवं चिंतन शक्ति, आत्मनिर्भरता तथा कठिन परिश्रम आदि सभी मानसिक शक्तियों को पूर्ण रूप से विकसित करने का अवसर प्रदान करता है। इस संबंध में हब्स ने ठीक ही लिखा है कि- “गणित मस्तिष्क को अध्यक्ष और तीव्र बनाने में उसी प्रकार कार्य करता है जैसे किसी औजार को तीक्ष्ण करने में काम आने वाली पत्थर।”

2. व्यवहारिक मूल्य (Practical Value):

गणित शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य उसकी व्यवहारिक उपयोगिता है। गणित की अन्य उद्देश्यों में सर्वप्रथम इसी उद्देश्य का जन्म हुआ। गणित के बड़े आलोचक भी इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि केवल प्रयोगात्मक मूल्य को सामने रखते हुए इसका अध्ययन परमावश्यक है। प्रत्येक मनुष्य को व्यवहारिक एवं सामाजिक जीवन में प्रतिदिन विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस समस्याओं को हल करने के लिए उसे किसी न किसी रूप में गणित का प्रयोग अवश्य ही करना पड़ता है। एक व्यक्ति अपना कार्य बिना पढ़े लिखे चला सकता है, लेकिन बिना गणना या गिनती का ज्ञान रखे वह अपना काम नहीं चला सकता। इसके अभाव में उसे दूसरों की कृपा दृष्टि पर ही निर्भर रहना पड़ता है और जीवन में पग-पग पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

आज हम माप तोल की दुनिया में रह रहे हैं जहां दिनों-दिन मापदंड का मूल्य बढ़ रहा है। आज संसार प्रत्येक वस्तु की उन्नति को चाहे वह भौतिक, सामाजिक, आत्मिक हो अथवा मानसिक, उसे मापन चाहता है। घर का बजट बनाते समय, आय और मजदूरी निकलते समय, वस्तुओं को तोलते समय, गाड़ी चलाते समय, दफ्तर अथवा स्कूल जाते समय, लिफाफे पर टिकट लगाते समय, तार घर में तार देते समय, दूध उबलते समय, थर्मामीटर लगाते समय, दौड़ करवाते समय, परीक्षाओं में पर्चे बांटते समय, समय का मुख्य ध्यान रखने की बहुत आवश्यकता प्रतीत होती है। जीवन का कोई पक्ष ऐसा नहीं, जिससे गणित की आवश्यकता नहीं है। इस संबंध में यंग महोदय का कहना सत्य ही प्रतीत होता है- “लौह, वाष्प और विद्युत के इस युग में जिस ओर भी मुड़कर देखें, गणित ही सर्वोपरि है। यदि यह रीढ़ की हड्डी निकाल दी जाए तो हमारी भौतिक सभ्यता का ही अंत हो जाएगा।“

गणित की मूलभूत प्रक्रिया जैसे गिनना, जोड़ना, भाग देना, घटना, तौलना, मापन, बेचना, खरीदना, गुना करना आदि हमारे दैनिक जीवन का, यहां तक की सभी व्यवसाय चाहे वह बड़ा हो या छोटा, गणित पर ही टिका हुआ है, जैसे- एकाउंटेंसी, बैंकिंग, टेलरिंग, शॉपकीपिंग, टैक्सेशन, इंश्योरेंस, पोस्टल जॉब्स आदि। आज के वैज्ञानिक युग में गणित के महत्व पर प्रकाश डालना सूर्य को दीपक दिखाना है। गणित ही विज्ञान की जननी है तथा बिना गणित की सहायता से विज्ञान में प्रगति संभव नहीं है।

गणित का ज्ञान अन्य विषयों जैसे विज्ञान, ज्योतिष, वाणिज्य, अर्थशास्त्र, इंजीनियरिंग, भूगोल आदि के अध्ययन में भी अति आवश्यक है। गणित की सहायता से ही इन विषयों में नवीन खोज करने, आंकड़े एकत्रित करने आदि का कार्य संभव हो सका है। इसलिए बेकन ने सही कहा है- “गणित सभी विज्ञानों का सिंह द्वार और कुंजी है।”

3. सांस्कृतिक मूल्य (Cultural Value):

समाज की संस्कृति और सभ्यता के निर्माण एवं विकास में गणित ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। गणित के अध्ययन से व्यक्ति को समानता, समरूपता, क्रमबद्धता, नियमितता आदि महत्वपूर्ण सामाजिक मूल्यों का बोध होता है जिनके द्वारा वह प्रकृति में पाए जाने वाले सौंदर्य की अनुभूति कर सकता है। नृत्य, चित्रकला, हस्तकला आदि का विकास गणित के ज्ञान द्वारा ही संभव हुआ है।

गणित के अध्ययन से मनुष्य सभ्य बन चुका है। ज्यों-ज्यों सामाजिक जीवन अधिक जटिल बनता जाता है, त्यों-त्यों गणित के अध्ययन की आवश्यकता बढ़ती जाती है। गणित का सांस्कृतिक महत्व दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। मानव के और अधिक सुसभ्य तथा समृद्ध होने का एकमात्र कारण गणित में नवीनतम खोजों एवं प्रयासों को ही माना जा सकता है। आज हम आधुनिक कहलाने में गर्व का अनुभव करते हैं और इसी आधुनिक सभ्यता की नीव जिन व्यवसायों पर टिकी है वे हैं एग्रीकल्चर, इंजीनियरिंग, मेडिसिन, इंडस्ट्री आदि। लेकिन हमें यह भी नही भूलना चाहिए कि जिन व्यवसायों को हम आधुनिक सभ्यता की रीढ़ की हड्डी समझते हैं उनके विकास में गणित में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।

हमारा जीवन भौतिकवादी (Materialistic) या यांत्रिक (Mechanical) हो गया है तो निःसंदेह यह भी हमारे जीवन पर गणित के प्रभाव को ही परिलक्षित करता है। आजकल जिस युग में हम रह रहे हैं, वह विज्ञान का युग है। ऐसी परिस्थितियों में गणित के ज्ञान के बिना मनुष्य विज्ञान या तकनीकी ज्ञान को समझा नहीं सकता। समाज में गरीबी, अज्ञानता, बीमारी अंधविश्वास आदि को हटाने में गणित का समाज में महत्वपूर्ण स्थान है। विद्युत की सहायता से संपर्क साधनों जैसे- टेलीफोन, रेडियो, टेलीविजन आदि का काफी विकास हुआ है तथा अब आणविक शक्ति का उपयोग भी मनुष्य कर सकता है। विज्ञान की इस उन्नति में गणित का बहुत बड़ा हाथ रहा है।

प्रोफेसर बाल का कथन है कि- “एक अन्वेषक के लिए नया अनुसंधान करना तब तक कठिन है जब तक वह गणितज्ञ भी ना हो।” किसी भी नए अनुसंधान की संभावना पहले कागज पर देखी जाती है। किसी भी क्रिया को कार्य रूप देने से पहले गणना के आधार पर ही यह निश्चित कर लिया जाता है कि वह कहां तक संभव है और फिर उसी के अनुसार उसमें संशोधन करके समय शक्ति और धन के अपव्यय को बचा लिया जाता है। इस प्रकार गणित ने हमारे समाज में संस्कृति और सभ्यता के विकास में अनुपम योगदान दिया है।

4. अनुशासनात्मक मूल्य (Disciplinary Value):

विद्यालयों में गणित इसलिए पढ़ाई जाती है कि छात्रों को विभिन्न मानसिक शक्तियों जैसे- नियमितता, परिशुद्धता, मौलिकता, आत्मनिर्भरता, क्रमबद्धता, सभ्यता और ईमानदारी, एकाग्रता, कल्पना, आत्मविश्वास, शीघ्र समझने की शक्ति, स्मृति आदि का प्रशिक्षण मिल सके जिससे उनका मस्तिष्क अनुशासित हो जाए। छात्रों को विभिन्न मानसिक क्रियाओं का प्रशिक्षण मिलता है। अतः वे अन्य विश्वासों के आधार पर देखकर, सुनकर अथवा पढ़कर किसी बात को सही नहीं मान लेते हैं अपितु स्वयं परीक्षण करके अपने निरीक्षण के आधार पर ही निष्कर्ष निकालते हैं।

इस उद्देश्य के अनुसार गणित मानसिक व्यायाम के लिए है और इस उद्देश्य की पूर्ति तभी संभव है जबकि बालक पढ़ते समय और अध्यापक उन्हें पढ़ते समय इस बात की विशेष चिंता ना करें कि उन्होंने क्या पढ़ा है? अथवा कितना पढ़ा है? बल्कि अपना सारा ध्यान इस बात पर केंद्रित करें कि उन्होंने उसे ‘किस प्रकार’ और ‘किस विधि द्वारा’ पढ़ाया है। नए ज्ञान की प्राप्ति केवल विचार, तर्क, निर्णय आदि मानसिक क्रियाओं द्वारा ही होनी चाहिए। गणित के अध्ययन में स्मरण शक्ति का काम प्रयोग होता है। विवेक शक्ति बहुत प्रखर हो जाती है। गणित का विद्यार्थी यह अनुभव करने लगता है कि समस्याओं को हल करने में स्मरण शक्ति की अपेक्षा चिंतन और तर्क शक्ति का अधिक प्रयोग किया जाता है। गणित पढ़ा हुआ विद्यार्थी अन्य विद्यार्थियों की अपेक्षा तर्क के द्वारा शीघ्र ही निर्णय करके दैनिक जीवन संबंधी समस्याओं को बड़ी सुविधा से हल कर लेता है।

5. संक्षिप्तता (Precision):

संक्षिप्तता इस विषय का विशेष गुण है। भाषा की संक्षिप्तता पढ़ाने के लिए कानून के बाद गणित का ही दूसरा स्थान है। इसमें विचारों की संदिग्धता नहीं होती है। गणित में सांकेतिक भाषा का प्रयोग होता है। संकेतों के द्वारा कार्य करना अन्य विषयों के अध्ययन के लिए एक अच्छी तैयारी है। संसार का अधिकतर कार्य संकेतों के द्वारा ही होता है। टेलीफोन पर कार्य करने वाली महिला, सिगनल टावर पर से उड़ते वायुयानों का पथ प्रदर्शन करने वाला व्यक्ति तथा रेलवे कंट्रोलर आदि सभी अपने कार्यालय में संकेतों द्वारा कार्य करते हैं। वास्तव में कार्य जितना अधिक महत्वपूर्ण होगा, उतना ही कम इसका प्रत्यक्ष पदार्थों से संबंध होगा। हां बिना समझे केवल संकेतों से ही खेलते रहना अवश्य घाटक होता है।

6. दैनिक जीवन की यथार्थता में समानता (Similarity with the Reasoning of Daily Life):

गणित के अध्ययन की भांति चिंतन की स्पष्टता और यथार्थता दैनिक जीवन के लिए नितांत अनावश्यक है। जिस प्रकार एक गणित का विद्यार्थी समस्या को हल करने के लिए अपने विवेक शक्ति के आधार पर उसका विश्लेषण करता है, उसी प्रकार एक व्यक्ति को जो एक औद्योगिक प्रतिष्ठान स्थापित करना चाहता है, यह देखना होगा कि उसके पास कौन-कौन से साधन उपलब्ध है, सर्वोत्तम एवं सरल साधन कौन सा है तथा उसकी अपने सामर्थ्य क्या है?

7. परिणामों की पुष्टि (Verification of the Results):

गणित में समस्याओं के परिणामों की पुष्टि संभव होती है जिससे विद्यार्थी में आत्मविश्वास की भावना जागृत होती है। जब विद्यार्थी को यह विश्वास हो जाता है कि उसने समस्या को सही हल कर लिया है तो वह अपने ऊपर गर्व का अनुभव करता है तथा उसे अपार आनंद की अनुभूति होती है। विद्यार्थी व्यक्तिगत रूप से जीवन की विभिन्न समस्याओं को साहस, उत्साह और आत्मविश्वास के साथ सुलझा लेते हैं।

8. नैतिक मूल्य (Moral Value):

नैतिकता एक ऐसा महत्वपूर्ण प्रत्यय है जो समय, व्यक्ति, परिस्थिति तथा स्थान में सबसे अधिक प्रभावित है। गणित का ज्ञान बच्चों के चारित्रिक और नैतिक विकास में सहायक है। एक अच्छे चरित्रवान व्यक्ति में जितने गुण होने चाहिए, उनमें से अधिकांश स्कूल गणित विषय के अध्ययन से विकसित होते हैं।  गणित पढ़ने से बच्चों में स्वच्छता, यथार्थता, समय की पाबंदी, सच्चाई, ईमानदारी, न्यायप्रियता, कर्तव्यनिष्ठा, आत्म-नियंत्रण, आत्म-निर्भरता, आत्म-सम्मान, आत्म-विश्वास, धैर्य, नियमों पर अडिग रहने की शक्ति, दूसरों की बात को सुनने एवं सम्मान देना, अच्छा-बुरा सोचने की शक्ति, आदि गुण का विकास स्वयं ही हो जाता है। इस प्रकार गणित के अध्ययन से चरित्र-निर्माण तथा नैतिक उत्थान में भी सहायता मिलती है।

9. सामाजिक मूल्य (Social Value):

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा जीवन एक-दूसरे के परस्पर सहयोग पर निर्भर करता है। सामाजिक जीवन यापन करने के लिए गणित के ज्ञान की अत्यधिक आवश्यकता होती है क्योंकि समाज में लेन-देन, व्यापार, उद्योग आदि व्यवसाय गणित पर ही निर्भर है। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना तथा समाज के विभिन्न अंगों को निकट लाने में सहायक, विभिन्न आविष्कारों, सामाजिक कठिनाइयों, आवश्यकताओं आदि में सहायता देने में गणित का बहुत बड़ा योगदान है, क्योंकि सभी वैज्ञानिक खोज का आधार गणित विषय ही है।  

10. सौंदर्यात्मक या कलात्मक मूल्य (Aesthetic Value):

गणित में विभिन्न समस्याओं को हल करने में बहुत आनंद की प्राप्ति होती है। विशेषकर उस स्थिति में जब उनकी समस्याओं का उत्तर किताब में दिए गए उत्तरों से मिल जाता है। गणित पढ़ने वाला प्रत्येक बच्चा संतुष्ट, आत्म-विश्वास, आत्म-निर्भरता तथा सफलता की खुशी में प्रफुल्लित हो उठता है, शायद इसी कारण, पाइथागोरस में अपनी प्रमेय की खोज की खुशी में 100 बैलों की बलि चढ़ाई थी तथा आर्किमिडीज तो अपने सिद्धांत की खोज के बाद अपना नंगापन भूल कर खुशी से प्रफुल्लित हो गया था।

यदि गणित को कलाओं का सृजनकर्त्ता तथा पोषक भी कहा जाए तो गलत नहीं है, क्योंकि सभी कलायें जैसे- चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत अथवा नृत्यकला आदि सभी की प्रगति में गणित का विशेष महत्व है। लेबिनिज ने भी स्पष्ट किया है कि “संगीत मानव के अवचेतन मन का अंकगणित की संख्याओं से संबंधित एक आधुनिक गुप्त व्यायाम है।”

किट्स महोदय ने कहा है कि “सत्य ही सुंदर है जब कभी गणित पढ़ने वाला कोई भी गणितीय व्यक्ति तथ्यों, नियमों एवं सिद्धांतों की सहायता से नवीन ज्ञान की खोज करता है अथवा प्राकृतिक घटनाओं की सत्यता की व्याख्या करता है तो उसके मन को आनंद की अनुभूति होती है तथा वह अपने परिणामों के सौंदर्यात्मक पहलुओं को महसूस करता है। इस प्रकार अपनी अप्रत्याशित उपलब्धि प्राप्त करने पर उसे उसमें संतुष्टि, प्रेरणा तथा प्रसन्नता मिलती है। वास्तविक रूप से उसके मन में गणित की प्रशंसा करने की भावना का विकास हो जाता है। अवकाश का सदुपयोग करने के लिए गणित की संख्याओं के खेल व पहेलियां विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। विभिन्न गणित खेल या पहेलियां बच्चों का केवल मनोरंजन ही नहीं बल्कि बच्चों के आनंद की अनुभूति तथा गणित के ज्ञान की प्रशंसा करने की भावना भी अधिक प्रबल करती है।

11. जीविकोपार्जन संबंधी मूल्य (Vocational Value):

शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य बालकों को अपने जीविका कमाने तथा रोजगार प्राप्त करने में समर्थ बना देना भी है। अन्य विषयों की अपेक्षा गणित इस उद्देश्य की प्राप्ति में सर्वाधिक सहायक सिद्ध हुआ है। आज वैज्ञानिक तथा तकनीकी समय में ज्ञान के सूक्ष्मतम नियमों सिद्धांतों एवं उपकरणों का प्रयोग एवं प्रसार सर्वव्यापी हो गया है जिनकी आधारशिला गणित ही है। वर्तमान समय में इंजीनियरिंग तथा तकनीकी व्यवसायों को अधिक महत्वपूर्ण तथा प्रतिष्ठित माना जाता है। इन सभी व्यवसायों का ज्ञान एवं प्रशिक्षण गणित के द्वारा ही संभव है। लघु उद्योग एवं कुटीर उद्योग की स्थापना का आधार भी गणित ही है।

निष्कर्ष: अतः यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जीविका कमाने के लिए गणित के ज्ञान की आवश्यकता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अवश्य ही होती है, तभी वह अपना जीवन यापन कर सकता है तथा अपने जीवन को सरल बना सकता है।

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