जीवों में विविधता

जीवों में विविधता

जीवों में विविधता :

Class 9 Science Chapter 7. जीवों में विविधता

पाठ्यपुस्तक NCERT
कक्षा कक्षा 9
विषय विज्ञान
अध्याय अध्याय 7
प्रकरण
जीवों में विविधता

जीवों में विविधता (Diversity in organism):

पृथ्वी पर जीवन की असीमित विविधता और असंख्य जीव है। इनके विषय में जानने के लिए हमें जीवों को समानता व असमानता के आधार पर वर्गीकृत करना पड़ेगा। क्योंकि लगभग 20 लाख प्रकार के जीव-जंतु का बाह्य आंतरिक, पोषण का तरीका व आवास का

टैक्सोनोमी (taxonomy) – यह जीव विज्ञान का वह भाग है जिसमें नाम पद्धति व जीवों का वर्गीकरण करते हैं। कार्ल लिनियस को टैक्सोनोमी का जनक कहा जाता है।

वर्गीकरण (Classification) – सभी जीवों को उनके समान व विभिन्न गुणों के आधार पर बांटना, वर्गीकरण कहलाता है ।

नाम पद्धति (Nomenclature) – विभिन्न देशों में विभिन्न नामों से विभिन्न जंतुओं को बुलाया जाता है, जिससे परेशानी होती है । इसलिए द्वि नाम पद्धति कार्ल लिनियस द्वारा दी गई। जीव वैज्ञानिक नाम लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाता है।

जीनस (Gens) का नाम जाति (Species) से पहले लिखा जाता है ।

जीनस का पहला अक्षर हमेशा बड़ा होता है, जबकि जाति का नाम हमेशा स्मॉल अल्फाबेट (small alphabet) से लिखा जाता है।

जीनस व जाति हमेशा इटैलिक (Italic) में लिखे जाते हैं व जीनस वह जाति को अलग-अलग रेखांकित किया जाता है ।

उदाहरण मनुष्य (Human) Homo sapiens , चीता (Tiger) Panthera tigris

वर्गीकरण (Classification)

  • सबसे पहले 1758 में कार्ल लिनियस ने जीव जगत को दो भागों में बांटा
  • पौधे व
  • जंतुओं
  • सन 1959 में राबर्ट व्हिटेकर ने जीवों को 5 वर्गों (जगत) में बांटा
  • मोनेरा (Monera)
  • प्रोटिस्टा (Protista)
  • फंजाई (Fungai)
  • प्लांटी (Plantae)
  • एनिमेलिया (Animalia)
  • सन् 1977 में कार्ल वोस (Carl Wose) ने मोनेरा को आर्किबैक्टिरिया (Archi Bacteria) व यूबैक्टिरिया (Eubacteria) में बांटा ।  

वर्गीकरण के लाभ –

  • असंख्य जीवों के अध्ययन को आसान व सुगम बनाता है।
  • विभिन्न समूहों के मध्य संबंध प्रदर्शित करता है।
  • यह जीव के सभी रूपों को एक नजर में प्रदर्शित करता है।
  • जीव विज्ञान के कुछ अनुसंधान वर्गीकरण पर आधारित है।

वर्गीकरण लिखने के लिए निम्न प्रारूप का प्रयोग किया जाता है जिसे वर्गीकरण का पदानुक्रम कहते हैं –

जगत (Kingdom) – फाइलम (Phylum) → वर्ग (Class) → गुण (Order) → कुल (Family) → वंशा (Genus) → जाति (Species)

पांच जगत वर्गीकरण में मुख्य रूप से जीवों के वर्गीकरण करने के लिए निम्न आधार का ध्यान रखा जाता है।

कोशिका का प्रकार (Types of cellular organisation)

प्रोकैरियोटिक कोशिका (Prokaryotic cell) – ये प्रथम अल्प विकसित कोशिकाएं हैं, जिनमें केन्द्रक बिना झिल्ली के होता है।

यूकैरियोटिक कोशिका (Eukaryotic cell) – ये विकसित कोशिकाएं जिनमें अंगक व पूर्ण रूप से विकसित केन्द्रक युक्त होती है।

शरीर संरचना (Body Structure)

एककोशिकीय जीव – ऐसे जीव जो एक ही कोशिका के बने होते हैं और सभी जैविक क्रियाएं इसमें संपन्न होती है।

बहुकोशिकीय जीव – ऐसे जीव जो कि एक से अधिक कोशिका के बने होते हैं व विभिन्न कार्य विभिन्न कोशिकाओं के समूह द्वारा किए जाते हैं।

भोजन प्राप्त करने का तरीका (Mode of Nutrition)

  •  स्वपोषी (Autotrophs) – वे जीव जो प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते हैं।
  •  परपोषी (Heterotrophs) – वे जीव जो अपना भोजन के लिए दूसरे जीवों पर निर्भर रहते हैं।

पांच जगत वर्गीकरण

जगत – मोनेरा (Kingdom-Monera)

  • प्रोकैरियोटिक, एक कोशिय
  • स्वपोषी या परपोषी
  • कोशिका भित्ति उपस्थित या अनुपस्थित

उदाहरण – एनाबिना, बैक्टिरिया, साइनोबैक्टिरिया, नील-हरित शैवाल

जगत- प्रोटिस्टा (Kingdom-Protista)

  • यूकैरियोटिक, एक कोशिय
  • स्वपोषी या परपोषी
  • गमन के लिए सीलिया, फलैजिला, कूटपाद
  • शैवाल, डायएटम, अमीबा, पैरामिशियम, युग्लीना

जगत-फंजाई / कवक (Kingdom-Fungi)

  • यूकैरियोटिक व विषमपोषी, बहुकोशिका
  • यीस्ट एक कोशिकीय कवक है जो आवयवीय श्वशन करता है
  • कोशिका भित्ति कठोर, जटिल शर्करा व काइटिन की बनी होती है।
  • अधिकांश सड़े गले पदार्थ पर निर्भर – मृतोपजीवी, कुछ दूसरे जीवों पर निर्भर -परजीवी।
  • कुछ शैवाल व कवक दोनों सहजीवी संबंध बनाकर साथ रहते हैं । शैवाल कवक को भोजन प्रदान करता है कवक रहने का स्थान प्रदान करते हैं ये जीव लाइकेन, अशुद्ध कहलाते हैं

उदाहरण – पेंसिलियम, एस्पेरेजिलस, यीस्ट, मशरूम

पादप जगत (Kingdom- Plante)

पादप जगत का मुख्य लक्षण प्रकाश संश्लेषण का होना है । इसे दो उपजगत क्रिप्टोगेम व फेनेरोगेम में बांटा गया है।

  • उपजगत क्रिप्टोगेम (Cryptogamy) – जिन पौधों में फूल या जननांग बाहर प्रकट नहीं होते हैं। (ढके होते हैं)
  • उपजगत फेनेरोगेम (Phenerogamy) – इन पौधों में फूल या जननांग स्पष्ट दिखाई देते हैं।

यूकैरियोटिक बहू कुर्सियां स्वपोषी क्लोरोफिल पाया जाता है कोशिका में कोशिका भित्ति सभी पादकों को 5 वर्गों में बांटा जाता है

वर्गीकरण का आधार पादप शरीर जड़ तना पत्ती में विभाजित अथवा नहीं विशेष उत्तक जल का संवहन या नहीं बीज बरगदवा ढके हुए या फल के अंदर उदाहरण सवाल प्रणाम नीम आदि

जगत क्रिप्टो गेम जिन पौधों में फूल या जननांग बाहर प्रकट नहीं होते हैं ढके होते हैं उप जगत फिर निरोग्य इन पौधों में फूल या जननांग स्पष्ट दिखाई देते हैं

रितु गेम

थैलोफाइटा (Thallophyta), ब्रायोफाइटा (Bryophyta), टेरिडोफाइटा

(Pteridophyta)

थैलोफाइटा (Thallophyta)

  • पौधे का शरीर जड़ तथा पत्ती में विभाजित नहीं होता बल्कि एक थैलस है।
  • सामान्यत: शैवाल कहते हैं।
  • कोई संवहन उत्तक उपस्थित नहीं।
  • जनन (spores) के द्वारा
  • मुख्यतः जल में पाए जाते हैं।

उदाहरण – उल्वा, स्पायरोगायरा, क्लेडोफोरा, यूलोथ्रिक्स

ब्रायोफाइटा (Bryophyta)

  • सरलतम पौधे, जो पूर्णरूप से विकसित नहीं।
  • कोई संवहन उत्तक उपस्थित नहीं।
  • स्पोर (spores) द्वारा जनन।
  • भूमि व जल दोनों स्थान पर पाए जाते हैं इसलिए इनमें पादकों का एम्फीबिया / उभयचर भी कहते हैं।

उदाहरण – फ्यूनेरिया, रिक्सिया, मार्केशिया

टेरिडोफाइटा (Pteridophyta)

  • पादप का शरीर तना, जड़ व पत्तियों में विभक्त होता है
  • संवहन तंत्र उपस्थित
  • जननांग बहुकोशिकीय

उदाहरण – मार्सिलिया, फ़र्न, होर्सटेल

जिम्नोस्पर्म (Gymnosperm)

  • बहूवर्षीय, सदाबहार, काष्ठीय।
  • शरीर जड़, तना व पत्तियों में विभक्त।
  • संवहन उत्तक उपस्थित।
  • नग्न बीज, बिना फल व फूल।

उदाहरण – पाइनस (Pinus), साइकस (Cycus)

एंजियोस्पर्म (Angiosperm)

  • एक बीज पत्री (Monocotyleden)
  • द्वि-बीज पत्री (Dicototyleden)
  • फूलों वाले पौधे
  • फूल बाद में फल में बदल जाता जाता है।
  • बीज फल के अंदर।
  • भ्रूण के अंदर पत्तियों जैसे बीचपत्र पाए जाते हैं । जब पौधा जन्म लेता है तो वे हरी हो जाती है, जो प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करती है

जंतु जगत (Kingdom-Animalia)

जंतु जगत में वर्गीकरण का आधार :

संगठन का स्तर

  • कोशिकीय स्तर – इस स्तर पर जीव को कोशिका बिखरे सहुत में होती है।  
  • उत्तक स्तर – इस स्तर पर कोशिकाएं अपना कार्य संगठित होकर उत्तक के रूप में करती है।
  • अंग स्तर – उत्तक संगठित होकर अंग निर्माण करता है जो एक विशेष कार्य करता है।
  • अंगतंत्र स्तर – अंग मिलकर तंत्र के रूप में शारीरिक कार्य करते हैं और प्रत्येक तंत्र एक विशिष्ट कार्य करता है।

सममिति

  • असममिति – किसी भी केंद्रित अक्ष से गुजरने वाली रेखा इन्हें दो बराबर भागों में विभाजित नहीं करती है।
  • अरीय सममिति – किसी भी केंद्रित अक्ष से गुजरने वाली रेखा इन्हें दो बराबर भागों में विभाजित करती है।
  • द्विपाश्रव समिति – जब केवल किसी एक ही अक्ष से गुजरने वाली रेखा द्वारा शरीर दो समरूप दाएं व बाएं भागों में बांटा जा सकता है।

द्विकोरिक तथा त्रिकोरिक संगठन (Diploblastic and Triploblastic)

  • द्विकोरिक – जिन प्राणियों में कोशिकाएं दो भ्रूणीय स्तरों में व्यवस्थित होती है बाह्य तथा आंतरिक
  • त्रिकोरिक – वे प्राणी जिनके विकसित भ्रूण में तृतीय भ्रूणीय स्तर होता है।

प्रगुहा (सीलोम) (शरीर भित्ति तथा आहार नाल के बीच में गुहा)

  • प्रगुही प्राणी – मिजोडर्म से आच्छादित शरीर गुहा को देहगुहा कहते हैं । प्रगुही प्राणी में देहगुहा उपस्थित होती है ।
  • कूट–गुहिक प्राणी – कुछ प्राणियों में यह गुहा मिसोडर्म से आच्छादित ना होकर बल्कि मिसोडर्म एकटोडर्म एवं एंडोडर्म के बीच बिखरी हुई थैली के रूप में पाई जाती है।
  • अगुहिय – जिन प्राणियों में शरीर में गुहा नहीं पाई जाती।

पृष्ठ रज्जू (नोटोकोर्ड)

  • कार्डेट (कशेरुकी) – पृष्ठ रज्जू युक्त प्राणी को कशेरुकी कहते हैं।
  • नॉन कार्डेट (अकशेरुकी) – पृष्ठ रज्जू रहित प्राणी।

नोटोकोर्ड (Notochord) – नोटोकोर्ड छड़ की तरह एक लंबी संरचना है जो जंतुओं के पृष्ठ भाग पर पाई जाती है तंत्रिका उत्तक को आहार नाल से अलग करती है।

फाइलम-पोरीफेरा (Phylum-Porifera)

  • कोशिकीय स्तर
  • अचल जंतु
  • पूरा शरीर छिद्रयुक्त
  • बाह्य स्तर स्पंजी तंतुओं का बना

उदाहरण – स्पंज जैसे: साइकन, यूप्लेक्टेला

फाइलम सीलेन्टरेटा (Phylum Colentrata)

  • उत्तकीय स्तर।
  • सीलोम युक्त।
  • अरीय सममिति, द्वि-स्तरीय।
  • खुली गुहा।

उदाहरण – हाइड्रा, सी एनीमोन, कोरल

फाइलम: प्लेटिहेल्मेन्थीज (Phylum Platehelminthes)

  • चपटे पत्ती या फीते जैसे।
  • परजीवी व स्वतंत्र दोनों।
  • शरीर द्वि पाश्रव सममिति व त्रिकोरक।
  • सीलोम उपस्थित नहीं  
  • नर व मादा जननांग एक जीव में उपस्थित।

उदाहरण – लीवर फ्लूक, ब्लड फ्लो, टेपवर्म

एस्केलमिन्थीज (Aschelminthes) or निमेटोडा (Nematoda)

  • शरीर, सूक्ष्म से कई सेंटीमीटर तक।
  • त्रिकोरक, द्वि-पाश्रव सममिति।
  • वास्तविक देहगुहा का अभाव।
  • कूट सीलोम उपस्थित।

उदाहरण – एस्केरिस, बुकेरेरिया

एनीलिडा (Annelida)

  • नम भूमि, जल व समुद्र में पाए जाने वाले।
  • वास्तविक देह गुहा वाले।
  • उभयलिंगी, लैंगिक या स्वतंत्र।
  • शरीर खंड युक्त।

उदाहरण – केचुआ, जोंक

आर्थ्रोपोडा (Arthropoda)

  • जंतु जगत के 80 जीव इस फाइलम से (सबसे बड़ा जगत) संबंधित
  • पैर खंड युक्त व जुड़े हुए और सामान्यत: कीट कहलाते हैं।
  • शरीर सिर, वक्ष व उदर में विभाजित।
  • अग्रभाग पर संवेदी स्पर्शक उपस्थित।
  • बाह्य कंकाल काइटिन का।
  • खुला परिसंचरण तंत्र।

उदाहरण – कीड़े, मकड़ी, बिच्छू, कॉकरोच आदि

मौलस्का (Mollusca)

  • दूसरा बड़ा फाइलम 90,000 जातियां।
  • शरीर मुलायम द्वि-पाश्रव सममिति।
  • शरीर सिर, उदर व पाद में विभाजित।
  • बाह्य भाग कैल्शियम के खोल से बना।
  • नर व मादा अलग

उदाहरण – सीपी, घोंघा, ऑक्टोपस, काइटिन

इकाइनोडरमेटा (Echinodermeta)

  • समुद्री जीव।
  • शरीर तारे की तरह गोल, या लंबा।
  • शरीर की बाहरी सतह पर कैल्शियम के कांटे।
  • शरीर अखंडित व त्रिकोरक।
  • लिंग अलग-अलग।

उदाहरण – सीअर्चिन, स्टारफिश आदि

कॉर्डेटा (Chordeta)

  • द्वि पाश्रव सममिति, त्रिकोरक।
  • सीलोम उपस्थित।
  • मेरुरज्जु उपस्थित।
  • पूँछ जीवन की किसी अवस्था में उपस्थित।
  • कशेरुक दंड उपस्थित।

प्रोटो कार्डेटा (Protochordeta)

  • कृमि की तरह के जंतु, समुद्र में पाए जाने वाले।
  • द्वि पाश्रव सममिति।
  • श्वसन गिल्स द्वारा।
  • लिंग अलग-अलग।
  • जीवन की अवस्था में नोटोकार्ड की उपस्थिति।

उदाहरण – बेलेनोग्लासस, हर्डमेनिया

वर्ग मत्स्य (Pisces)

  • जलीय जीव।
  • शरीर कवच युक्त।
  • गिल उपस्थित।
  • अरीय सममिति जो तैरने में मदद करता है।
  • हृदय दो कक्ष युक्त, ठंडे खून वाले।
  • अंडे देने वाला, जिनसे नए जीव बनते हैं।
  • कुछ का कंकाल उपस्थित व कुछ का हड्डी से बना।

उदाहरण – शार्क, रोहू, टारपीडो आदि

जल स्थल चर

एम्फीबिया (Amphibia)

  • भूमि व जल में पाए जाने वाले।
  • त्वचा पर ग्रंथियां उपस्थित।
  • शीत रुधिर, हृदय 3 कोष्टक वाला।
  • श्वसन गिल या फेफड़ों द्वारा।
  • पानी में अंडे देने वाले।

उदाहरण – टोड, मेंढक, सेलामेंडर

सरीसृप (Reptilia)

  • अधिकांश थलचर।
  • शरीर पर शल्क, श्वसन फेफड़ों द्वारा।
  • शीत रुधिर।
  • हृदय त्रिकोष्ठीय लेकिन मगरमच्छ का हृदय चार कोष्ठीय।
  • कवच युक्त अंडे देते हैं।

उदाहरण – सांप, कछुआ, छिपकली, मगरमच्छ आदि

पक्षी वर्ग (Aves)

  • गर्म खून वाले जंतु।
  • चार कोष्ठीय हृदय।
  • श्वसन फेफड़ों द्वारा।
  • शरीर पर पंख पाए जाते हैं।
  • शरीर सिर, गर्दन, धड़ व पूँछ में विभाजित।
  • अग्रपाद पंखों में रूपांतरित।
  • नर व मादा अलग।

उदाहरण – कौआ, कबूतर, मोर आदि

स्तनधारी (Mamalia)

  • सबसे बड़ा वर्ग।
  • शरीर बाल युक्त, गर्म रुधिर वाला, समतापी।
  • स्तन ग्रंथियां, बाह्य कर्ण उपस्थित।
  • श्वसन फेफड़ों द्वारा।
  • शिशुओं को जन्म।
  • निषेचन क्रिया आंतरिक।
  • हृदय चार कोष्ठीय।
  • मां-बाप द्वारा शिशु की देखभाल।

उदाहरण – मनुष्य, कंगारू, हाथी, बिल्ली, चमगादड़ आदि

जंतु जगत

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