प्राकृतिक संपदा

प्राकृतिक संपदा

प्राकृतिक संपदा

Class 9 Science Chapter 14. प्राकृतिक संपदा

पाठ्यपुस्तक NCERT
कक्षा कक्षा 9
विषय विज्ञान
अध्याय अध्याय 14
प्रकरण प्राकृतिक संपदा

परिचय (Introduction):

◆ पृथ्वी पर जीवन अनेक संपदाओं पर निर्भर है, जैसे– मृदा, वायु, जल, सूर्य से प्राप्त ऊर्जा आदि।  

◆ स्थल और जलाशयों के ऊपर हवा के असमान गर्म होने के कारण पवने उत्पन्न होती है।

◆ जलाशयों से होने वाले जल का वाष्पीकरण तथा संघनन हमें वर्षा प्रदान करती है।

◆ वायु, जल तथा मृदा का प्रदूषण जीवन की गुणवत्ता और जैव विविधताओं को हानि पहुंचाता है।

◆ हमें अपने प्राकृतिक संपदाओं को संरक्षित रखने की आवश्यकता है और उन्हें संपोषणीय रूपों (Sustainable manner) में उपयोग करने की आवश्यकता है।

◆ विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व चक्रीय रूपों से पुनः उपयोग किए जाते हैं जिसके कारण जैव मण्डल (Biosphere) के विभिन्न घटकों में निश्चित संतुलन स्थापित होता है।

➲ पृथ्वी के सभी प्रकार के जीवों की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति पृथ्वी की संपदा और सूर्य की ऊर्जा से होती है।

➲ वायु, पानी, मृदा, खनिज, प्राणी और पौधे, मनुष्य जाति के लिए कई प्रकार से उपयोगी है।

पृथ्वी पर ये संपदा कौन-कौन सी है ?

◆ पृथ्वी की सबसे बाहरी परत को स्थलमंडल कहते हैं, पृथ्वी की सतह से लगभग 75% भाग पर पानी है। यह भूमिगत रूप में भी पाया जाता है। यह समुद्र, नदियों, झीलों, तालाबों आदि के रूप में है। इन सब को मिलाकर जलमंडल कहते हैं। वायु जो पृथ्वी पर एक कंबल की तरह कार्य करता है, वायुमंडल कहलाता है।

जैव मंडल (Biosphere):

जीवन का भरण-पोषण करने वाला पृथ्वी का क्षेत्र, जहां वायुमंडल, जलमंडल और स्थलमंडल एक-दूसरे से मिलकर जीवन को संभव बनाते हैं, उसे जैवमंडल कहते हैं। यह दो प्रकार के घटकों से मिल कर बनता है–

(1) जैविक घटक – पौधे एवं जंतुओं

(2) अजैविक घटक – हवा, पानी और मिट्टी

जीवन के श्वास – हवा

➲ वायु कई गैसों जैसे नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड और जलवाष्प का मिश्रण है। वायु में नाइट्रोजन 78% और ऑक्सीजन 21% होती है। कार्बन डाइऑक्साइड बहुत कम मात्रा में वायु में होती है। हिलियम, नियान, आर्गन और क्रिप्टॉन जैसे उत्कृष्ट गैसें अल्प मात्रा में होती है।

वायुमंडल की भूमिका

◆ वायु ऊष्मा की कुचालक है- वायुमंडल दिन के समय और वर्ष भर पृथ्वी के औसत तापमान को लगभग नियत रखता है।

◆ यदि दिन के समय तापमान में अचानक वृद्धि को रोकता है और रात के समय ऊष्मा को बाहरी अंतरिक्ष में जाने की दर को कम करता है जिससे रात अत्यधिक ठंड नहीं हो पाती। पृथ्वी की इस स्थिति की तुलना चंद्रमा की स्थिति से कीजिए जहां कोई वायुमंडल नहीं है। वहां रात का तापमान -190 oC और दिन का तापमान 110 oC के बीच रहता है। साथ ही वह हवा और पानी का अभाव रहता है।

वायु की गति – पवनें

◆ दिन के समय हवा की दिशा समुद्र से स्थल की ओर होती है, क्योंकि स्थल के ऊपर की हवा जल्दी गर्म हो जाती है और ऊपर उठने लगती है।

◆ रात के समय हवा की दिशा स्थल से समुद्र की ओर होती है, क्योंकि रात के समय स्थल और समुद्र ठंडे होने लगते हैं।

◆ एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में हवा की गति पवनों का निर्माण करती है।

वर्षा – (जलाशयों से होने वाले जल का वाष्पीकरण तथा संघनन हमें वर्षा प्रदान करता है।)  

➲ दिन के समय जब जलाशयों का पानी लगातार सूर्य किरणों के द्वारा गर्म होता है और जल वाष्पित होता रहता है। वायु जल वाष्प को ऊपर ले जाती है जहां या फैलती हुई ठंडी होती है। ठंडी होकर जल वाष्प जल की बूंदों के रूप में संघनित हो जाती है। जब बूंदे आकार में बढ़ जाती है तो नीचे गिरने लगती है। इसे वर्षा कहते हैं।

वायु प्रदूषण (Air Pollution):

वायु में स्थित हानिकारक पदार्थों की वृद्धि जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर के ऑक्साइड, नाइट्रोजन, फ्लोराइड, सीसा, धूल के कण वायु प्रदूषण कहलाता है, इससे-

मनुष्यों में– श्वसन और गुर्दे की बीमारी, उच्च रक्तचाप, आंखों में जलन, कैंसर एवं,

पौधों में– कम वृद्धि, क्लोरोफिल की गिरावट, पत्तियों पर रंग के धब्बे आदि बीमारियाँ देखने को मिलती है।

अम्लीय वर्षा (Acid Rain):

अम्लीय वर्षा (Acid Rain): प्राकृतिक संपदा

जीवाश्म ईंधन जब जलते हैं या ऑक्सीकृत होकर सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड गैसें बनाती है। ये गैसें वायुमंडल में मिल जाती है। वर्षा के समय यह गैसें पानी में घुल कर सल्फ्यूरिक अम्ल और नाइट्रिक अम्ल बनाती है, जो वर्षा के साथ पृथ्वी पर आता है, जिसे अम्लीय वर्षा कहते हैं।

ग्रीन हाउस प्रभाव (Green House Effect):

प्राकृतिक संपदा

वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड जलवाष्प आदि पृथ्वी से परावर्तित होने वाले अवरक्त किरणों को अवशोषित कर लेते हैं जिससे वायुमंडल का ताप बढ़ जाता है।

➲ कार्बन डाइऑक्साइड का प्रतिशत बढ़ने के कारण दुष्प्रभाव–

1. ग्रीन हाउस प्रभाव बढ़ जाता है।

2. वैश्वीक उष्मिकरण होता है।

3. पृथ्वी की औसत तापमान में वृद्धि होती है।

4. चोटियों पर जमी बर्फ ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण वर्ष भर पिघलती रहती है।  

➲ CO2 पृथ्वी को गर्म रखता है जैसे कि शीशे (glass) द्वारा ऊष्मा को रोक लेने के कारण शीशे के अंदर का तापमान बाहर के तापमान से काफी अधिक हो जाता है।

◆ ओजोन (O3), ऑक्सीजन का एक अपरूप है, जिसमें ऑक्सीजन के 3 परमाणु पाए जाते हैं।

◆ यह वायुमंडल में 16 किमी. से 60 किमी. की ऊंचाई पर उपस्थित है।

◆ यह सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरण (Ultra Violet Rays) को अवशोषित कर लेते हैं। इस प्रकार पृथ्वी पर जीवो के लिए ओजोन परत एक सुरक्षात्मक आवरण के रूप में कार्य करती है।

◆ यह पराबैंगनी विकिरण से हानिकारक विकार जैसे मोतियाबिंद, त्वचा कैंसर एवं अनुवांशिक रोगों से बचाती है।

◆ 1985 के आस-पास वैज्ञानिकों ने अन्टार्टीका भाग के पास ओजोन छिद्र की उपस्थिति ज्ञात की।

ओजोन परत के ह्रास होने के कारण (Reason of Ozone depletion):

◆ एरोसॉल या क्लोरो-फ़्लोरो-कार्बन (CFC) की क्रिया के कारण

◆ सुपरसोनिक विमानों में ईंधन के दहन से उत्पन्न पदार्थ व नाभिकीय विस्फोट भी ओजोन परत के ह्रास होने के कारण है।

स्मॉग (Smog):

◆ यह वायु प्रदूषण का ही एक प्रकार है।

◆ धुआं एवं धूल के मिश्रण को स्मॉग कहते हैं।

धुआं + धूल = स्मॉग

◆ स्मॉग किसी भी जलवायु में बन सकती है। जहां ज्यादा वायु प्रदूषण हो (खासकर शहरों में)

जल: एक अद्भुत द्रव

◆ पृथ्वी की सतह के लगभग 75% भाग पर पानी विद्यमान है।

◆ यह भूमि के अंदर भूमिगत जल के रूप में भी पाया जाता है।

◆ अधिकांशत: जल के स्रोत है सागर, नदियां, झरने एवं झील। जल की कुछ मात्रा जलवाष्प के रूप में वायुमंडल में भी पाई जाती है।

जल की आवश्यकता

➲ यह शरीर का ताप नियंत्रित करता है।

➲ जल मानव शरीर की कोशिकाओं, कोशिका-संरचनाओं तथा उत्तकों में उपस्थित जीव द्रव का महत्वपूर्ण संघटक है।

➲ जल जंतु / पौधे हेतु आवास (Habitat) का कार्य करता है।

➲ सभी कोशिकीय प्रक्रियाएँ जल माध्यम में होती है।

जल प्रदूषण (Water Pollution):

➲ जब पानी पीने योग्य नहीं होता तथा पानी को उपयोग में लाते हैं, उसे जलप्रदूषण कहते हैं। (जल में अवांछीनीय अतिरिक्त पदार्थों का मिलना जल प्रदूषण है)

जल प्रदूषण के कारण–

◆ जलाशयों में उद्योगों का कचरा डालना।

◆ जलाशयों के नजदीक कपड़े धोना।

◆ जलाशयों में अवांछित पदार्थ डालना।

मृदा (Soil):

◆ भूमि की ऊपरी सतह पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर है। इसमें कार्बनिक पदार्थ एवं वायु प्रचुर मात्रा में उपस्थित होती है। यह सतह मृदा कहलाती है।

मिट्टी का निर्माण – निम्नलिखित कारक मृदा बनाती है–

सूर्य – दिन के समय सूर्य चट्टानों को गर्म करता है और वे फैलती है। रात को ठंडी होने से चट्टानें सिकुड़ती है और फैलने-सिकुड़ने से उनमें दरारें पड़ जाती है। इस प्रकार बड़ी-बड़ी चट्टानें छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाती है।

पानी – तेजी से बहता पानी भी चट्टानों को तोड़-फोड़ कर टुकड़े-टुकड़े कर देता हैं, जो आपस में टकरा कर छोटे-छोटे कणों में बदल जाते हैं, जिनसे मृदा बनती है।

वायु – तेज हवाएँ भी चट्टानों को काटती है और मृदा बनाने के लिए रेत को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है।

जीवित जीव – लाइकेन और मॉस चट्टानों की सतह पर उगती है और उनको कमजोर बनाकर महीन कणों में बदल देते हैं।

मृदा के घटक(Components of soil):

➲ मृदा में पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े, सड़े गले जीवों के टुकड़े, जिन्हें ह्यमस कहते हैं और विभिन्न प्रकार के सजीव उपस्थित होते हैं। ह्यमस मृदा को सरंध्र बनाता है ताकि वायु और पानी भूमि के अंदर तक जा सके।

मृदा की उपयोगिता (Usefulness of soil):

➲ मृदा एक आवश्यक प्राकृतिक संसाधन है। हम भोजन, कपड़ा तथा आश्रय पौधों से प्राप्त करते हैं जो मृदा में उगते हैं।

➲ जंतु मृदा में उगने वाले पौधों पर आश्रित रहते हैं।

विभिन्न प्रकार की मृदाएँ

जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil)

काली मिट्टी (Black Soil)

बलुई मिट्टी (Sandy Soil)

लेटेराईट मिट्टी (Laterite Soil)

मृदा अपरदन – मृदा की की ऊपरी सतह वायु, जल, बर्फ एवं अन्य भौगोलिक कारकों द्वारा लगातार हटाई जाती है। भूमि की ऊपरी सतह या मृदा का हटाना मृदा का अपरदन कहलाता है।

कारण

1. भूमि को पशुओं द्वारा अधिक मात्रा में चराना।

2. तेज हवाओं तथा पानी की वजह से मिट्टी की ऊपरी सतह का हटना।

3. पेड़ों की कमी होने के कारण भी मिट्टी की ऊपरी परत का हटना।

जैव रासायनिक चक्रण (Biochemical Cycles)

◆ जीव मंडल के जैव और अजैव घटकों में लगातार अंतः क्रिया होती रहती है।

◆ पौधे को कार्बन (C), नाइट्रोजन (N), ऑक्सीजन (O), फास्फोरस (P), सल्फर (S) आदि तत्वों और इनके खनिज की आवश्यकता होती है। ये खनिज जल, भूमि या वायु से पौधों (उत्पादक स्तर) में प्रवेश करते हैं और दूसरे स्तरों से होते हुए अपने मुख्य स्रोतों में स्थानांतरित होते रहते हैं। इस प्रक्रम को जैव रासायनिक चक्र कहते हैं।

जल चक्र (Water Cycle):

◆ वह पूरी प्रक्रिया, जिसमें पानी, जलवाष्प बनता है और वर्षा के रूप में जमीन पर गिरता है और फिर नदियों के द्वारा समुद्र में पहुंच जाता है जलचक्र कहलाता है।

जल चक्र (Water Cycle): प्राकृतिक संपदा

◆ महासागरों, समुद्रों, झीलों तथा जलाशयों का जल सूर्य की ऊष्मा के कारण वाष्पित  होता रहता है।

◆ पौधे मिट्टी से पानी को अवशोषित करते हैं और प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया के दौरान इस्तेमाल करते हैं। वे वायु में वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल मुक्त करते हैं।

◆ जंतुओं में श्वसन तथा जंतुओं के शरीर द्वारा वाष्पीकरण की क्रिया से जलवाष्प वातावरण में जाती है।

◆ जलाशयों से होने वाले जल का वाष्पीकरण तथा संघनन हमें वर्षा प्रदान करती है।

जल, जो वर्षा के रूप में जमीन पर गिरता है, तुरंत ही समुद्र में नहीं बह जाता है। इसमें से कुछ जमीन के अंदर चला जाता है और भूजल का भाग बन जाता है।

◆ पौधे भूजल का उपयोग बार-बार करते हैं और यह प्रक्रिया चलती रहती है।

कार्बन चक्र (Carbon Cycle): 

कार्बन चक्र (Carbon Cycle): प्राकृतिक संपदा

◆ कार्बन–चक्र वायुमंडल में कार्बन तत्व का संतुलन बनाए रखता है।

◆ कार्बन पृथ्वी पर ज्यादा अवस्था में पाया जाता है।

◆ यौगिक के रूप में यह वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में, अलग-अलग प्रकार के खनिजों में, कार्बोनेट और हाइड्रोजन कार्बोनेट के रूप में पाया जाता है।

◆ प्रकाश-संश्लेषण में पौधे कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करते हैं।

◆ उत्पादक स्तर (पौधों) से कार्बन उपभोक्ता स्तर (जंतुओं) तक स्थानांतरित होता है। इसका कुछ भाग श्वसन क्रिया द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में वायुमंडल में चला जाता है।

◆ जीव द्रव के अपघटन से कार्बन वायुमंडल में पहुंचता है।

नाइट्रोजन चक्र (Nitrogen Cycle):

नाइट्रोजन चक्र (Nitrogen Cycle): प्राकृतिक संपदा

◆ इस प्रक्रिया में वायुमंडल की नाइट्रोजन सरल अणुओं के रूप में मृदा और पानी में आ जाती है। यह सरल अनु जटिल अणुओं में बदल जाते हैं और जीवधारियों से फिर सरल अणुओं के रूप में वायुमंडल में वापस चले जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया को नाइट्रोजन चक्र कहते हैं।

◆ वायुमंडल का 78% भाग नाइट्रोजन गैस है।

◆प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल, RNA, DNA, विटामिन का आवश्यक घटक नाइट्रोजन है।

◆ पौधे और जंतु वायुमंडलीय नाइट्रोजन को आसानी से ग्रहण नहीं कर सकते अतः इसका नाइट्रोजन के यौगिकों में बदलना आवश्यक है।

◆ नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने वाले बैक्टीरिया जैसे राइजोबियम, फलीदार पौधों की जड़ों में मूल ग्रंथिका नामक विशेष संरचनाओं में पाए जाते हैं।

◆ वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन को नाइट्रोजन यौगिकों में परिवर्तित करने का प्रक्रम नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहलाता है।

◆ बिजली चमकने के समय वायु में पैदा हुआ उच्च ताप तथा दाब नाइट्रोजन को नाइट्रोजन के ऑक्साइड में बदल देता है।

◆ ये ऑक्साइड जल में खुलकर नाइट्रिक तथा नाइट्रस अम्ल बनाते हैं। जो वर्षा के पानी के साथ जमीन पर गिरते हैं।

◆ पौधे नाइट्रेटस और नाइट्राइट्स को ग्रहण करते हैं तथा उन्हें अमीनो अम्ल में बदल देते हैं। जिनका उपयोग प्रोटीन बनाने में होता है।

नाइट्रोजन चक्र के विभिन्न चरण

अमोनिकरण- यह मृत जैव पदार्थों को अमोनिया में अपघटन करने की प्रक्रिया है। यह क्रिया मिट्टी में रहने वाले सूक्ष्म जीवों या बैक्टीरिया द्वारा होता है।

नाइट्रीकरण– अमोनिया को पहले नाइट्राइट और फिर नाइट्रेट में बदलने की प्रक्रिया नाइट्रिकरण है।

विनाइट्रीकरण– वह प्रक्रम जिसमें भूमि में पाए जाने वाले नाइट्रेट स्वतंत्र नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित होते हैं, विनाइट्रीकरण कहलाता है।

ऑक्सीजन चक्र (Oxygen Cycle):

◆ ऑक्सीजन का मुख्य स्रोत वायुमंडल है। यह वायुमंडल में लगभग 21% उपस्थित है। यह पानी में घुले हुए रूप में जलाशयों में उपस्थित है और जलीय जीवो के जीवित रहने में सहायता करती है।

◆ वायुमंडल की ऑक्सीजन का उपयोग तीन प्रक्रियाओं में होता है जो श्वसन, दहन और नाइट्रोजन के ऑक्साइड का निर्माण है।

◆ ऑक्सीजन सभी जीव धारियों के श्वसन के लिए अनिवार्य है।

◆ प्रकाश संश्लेषण द्वारा ऑक्सीजन वायुमंडल में मुक्त होती है।

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