हम बीमार क्यों होते हैं ?

हम बीमार क्यों होते हैं?

हम बीमार क्यों होते हैं ?

Class 9 Science Chapter 13. हम बीमार क्यों होते हैं ?

पाठ्यपुस्तक NCERT
कक्षा कक्षा 9
विषय विज्ञान
अध्याय अध्याय 13
प्रकरण हम बीमार क्यों होते हैं ?

स्वास्थ्य (Health):

किसी व्यक्ति की सामान्य शारीरिक एवं मानसिक अवस्था ही उसका स्वास्थ्य है। WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के अनुसार “स्वास्थ्य व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक अवस्था है।”

लोगों को स्वस्थ एवं रोग मुक्त रखने के प्रति जागरूक हम प्रतिवर्ष 7 अप्रैल को ‘विश्व स्वास्थ्य दिवस’ के रूप में मनाते हैं।

स्वास्थ्य अच्छा रहने की वह अवस्था है, जिसमें शारीरिक मानसिक और सामाजिक कार्य उचित प्रकार से किया जा सके।

➲ अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक परिस्थितियां है–

(i) अच्छा भौतिक पर्यावरण

(ii) अच्छा सामाजिक वातावरण

(iii) संतुलित आहार एवं सक्रिय दिनचर्या

(iv) अच्छी आर्थिक स्थिति और रोजगार

व्यक्तिगत तथा सामुदायिक समस्याएं दोनों स्वास्थ्य को प्रभावित करती है।

समुदायिक स्वास्थ्य (Community Health):

पर्यावरण, सामाजिक और आर्थिक संसाधनों को लोगों में भावनात्मक और शारीरिक रूप से बनाए रखने के लिए जो उनकी आकांक्षाओं को आगे बढ़ाते हैं और उनके अनूठे वातावरण में उनकी जरूरतों को पूरा करते हैं।

◆ स्वास्थ्य व्यक्तिगत नहीं एक सामुदायिक (Community) समस्या है और व्यक्तिगत (Personal) स्वास्थ्य के लिए सामुदायिक स्वच्छता महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है।

◆ जीवों का स्वास्थ्य उनके पास-पड़ोस या पर्यावरण पर निर्भर करता है।

◆ रोगमुक्त और स्वस्थ रहने के लिए अच्छा भौतिक और सामाजिक वातावरण अनिवार्य है। इसलिए व्यक्तिगत और सामुदायिक स्वास्थ्य दोनों ही सामान्य अवस्था है।

स्वस्थ रहने और रोग मुक्त में अंतर:

स्वास्थ्य (Healthy)रोगमुक्त (Disease Free)
1. मनुष्य शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक रूप से अपनी क्षमताओं
का भरपूर उपयोग करें।
1. ऐसी अवस्था है जिसमें बीमारी का अभाव होता है।
2. व्यक्तिगत, भौतिक एवं सामाजिक वातावरण।2. व्यक्तिगत
3. व्यक्ति का अच्छा स्वास्थ्य है।3. इसमें व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा या निर्बल हो सकता है।  

रोग (Disease):

➲ रोग शरीर की वह अवस्था जो शरीर के सामान्य कार्य में बाधा या प्रभावित करें।

रोग तथा इसके कारण (Disease and its Cause):

Q रोग किस तरह के दिखाई देते हैं ?

◆ जब व्यक्ति को कोई रोग होता है तो शरीर के एक या अधिक अंगों का कार्य और रूप-रंग खराब हो जाता है।

◆ किसी अंग या तंत्र की संरचना में परिवर्तन परिलक्षित होना रोग का लक्षण (Symptoms) कहलाता है।

◆ लक्षणों के आधार पर चिकित्सक विशेष को पहुंचानता है और रोग की पुष्टि के लिए कुछ टेस्ट करवाता है।

रोग के लक्षण– रोग के लक्षण हमें खराबी या संकेत देते हैं जो रोगी द्वारा महसूस होता है।

रोग के चिन्ह– लक्षणों के आधार पर परीक्षण सही कारण जानने में मदद करते हैं।

रोगों के कारण ():

◆ वायरस, बैक्टीरिया, कवक, प्रोटोजोआ और कृमि (worms)

◆ कुपोषण

◆ अनुवांशिक विभिन्नता

◆ पर्यावरण प्रदूषण (हवा, पानी आदि)

◆ टीकाकरण का अभाव

रोग के प्रकार (Types of Diseases):

(1) तीव्र रोग (Acute disease) – वे रोग जो कम समय के लिए होते हैं, जैसे– सर्दी, जुकाम आदि।

(2) दीर्घकालीन रोग (Chronic disease)– अधिक समय तक चलने वाले रोगों को दीर्घकालीन रोग कहते हैं; जैसे– कैंसर, क्षय रोग (TB), फील पाँव (Elephantiasis) आदि।

(3) संक्रमक रोग (Infectious Diseases)– रोगाणु या सूक्ष्म जीवों द्वारा होने वाले रोगों को संक्रामक रोग कहते हैं । ऐसे रोग संक्रमित व्यक्ति से स्वास्थ्य व्यक्तियों में फैलते हैं। संक्रमक रोग के उत्पन्न करने वाले विभिन्न कारक हैं जैसे– बैक्टीरिया, फंजाई, प्रोटोजोआ और कृमि वर्ग

(4) असंक्रामक रोग (Non-infectious Diseases)– ये रोग पीड़ित व्यक्ति तक ही सीमित रहते हैं और अन्य व्यक्तियों में नहीं फैलते हैं, जैसे- हृदय रोग, एलर्जी।

(i) अभाव जन्य रोग- यह लोग पोषक तत्वों के अभाव से होते हैं, जैसे- घेघा, थाइरोइड

(ii)अपक्षयी रोग- जैसे- गठिया

(iii) एलर्जी

(iv) कैंसर

(5) जन्मजात रोग ()– वह रोग जो व्यक्ति में जन्म से ही होते हैं यह अनुवांशिक आधार पर होते हैं, जैसे- हीमोफीलिया आदि।

संक्रमक रोग और असंक्रामक रोग में अंतर

संक्रमण रोग (Infectious Diseases)असंक्रामक रोग (Non-infectious Diseases)
1. यह संक्रमित व्यक्ति से स्वास्थ्य व्यक्ति में फैलता है। 1. यह संक्रमित व्यक्ति से स्वास्थ्य में नहीं फैल सकता।
2. यह रोगाणुओं के आक्रमण के कारण उत्पन्न होता है। 2. यह जीवित रोगाणु को छोड़कर अन्य कारकों के कारण
फैलता है।
3. यह धीरे-धीरे पूरे समुदाय में फैल सकता है। 3. यह समुदाय में नहीं फैलता है।
4. इसका उपचार एंटीबायोटिक्स के प्रयोग द्वारा ही
किया जा सकता है।
उदाहरण – सामान्य सर्दी जुकाम  
4. इसका उपचार एंटीबायोटिक्स के द्वारा नहीं किया जा
सकता है।
उदाहरण – उच्च रक्तचाप  

रोगाणु– बीमारी और संक्रमण पैदा करने वाले सूक्ष्म जीव होते हैं इन्हें संक्रामक कारक भी कहते हैं। महामारी बीमारी कुछ रोग एक जगह या समुदाय में बड़ी तीव्रता से फैलते हैं और बड़ी आबादी को संक्रमित करते हैं इसे महामारी कहते हैं। जैसे – हैजा।

क्र.स.संक्रामक कारक (Infection agent)रोग (Diseases)
1. विषाणु (Virus)सर्दी-जुकाम, चेचक, एड्स, इंफ्लुएंजा आदि      
2. जीवाणु (Bacteria) हैजा, खसरा, क्षय रोग (TB), एंथ्रेक्स, टिटेनस  
3. कवक (Fungi)   दाद (Ring Worm)
4. प्रोटोजोआ (Protozoa)  मलेरिया, कालाजार, अमीबिय पेचिस
5. कृमि जनित रोग (Worm) फील पाँव (Elephantiasis)

रोग फैलने के साधन (Means of spreading Infectious diseases):

संक्रामक रोग पीड़ित व्यक्ति के संपर्क में आने से स्वस्थ व्यक्ति में फैल जाते हैं। सूक्ष्मजीव या संक्रमक कारक हमारे शरीर में निम्न साधनों द्वारा प्रवेश करते हैं– वायु, भोजन, जल, रोग वाहक द्वारा, लैंगिक संपर्क द्वारा।

वायु द्वारा– छींकने और खाँसने से रोगाणु वायु में फैल जाते हैं और स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। जैसे निमोनिया, क्षयरोग, सर्दी-जुकाम आदि।

जल और भोजन द्वारा- रोगाणु (संक्रमक कारक) हमारे शरीर में संक्रमित जल व भोजन द्वारा प्रवेश कर जाते हैं। जैसे– हैजा, अमीबिय पेचिस आदि।

रोग वाहक द्वारा– मादा एनाफिलीज मच्छर भी बीमारी में रोग वाहक का कार्य करती है। जैसे– मलेरिया, डेंगू आदि।

रैबीज संक्रमित पशु द्वारा– संक्रमित कुत्ता, बिल्ली, बंदर के काटने से रैबीज संक्रमण होता है।

लैंगिक संपर्क द्वारा– कुछ रोग जैसे सिफलिस और एड्स रोगी के साथ लैंगिक संपर्क द्वारा संक्रमित व्यक्ति में प्रवेश करता है।

एड्स का विषाणु– संक्रमित रक्त के स्थानांतरण द्वारा फैलता है, अथवा गर्भावस्था में रोगी माता से या स्तनपान कराने से शिशु का एड्स ग्रस्त होना।

एड्स (AIDS)- एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंसी सिंड्रोम (Acquired Immuno Deficiency Syndrome)

◆ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता या प्रतिरक्षा (Immunity) का काम हो जाना या बिल्कुल नष्ट हो जाना एड्स कहलाता है। यह एक भयानक रोग है। इसका रोगाणु HIV (human infecting virus) है।

संचरण होने के कारण (Method of transmission):

◆ पीड़ित व्यक्ति का रक्त स्थानांतरण करने से।

◆ यौन संपर्क द्वारा।

◆ एड्स से पीड़ित मां से शिशु में गर्भावस्था में या स्तनपान द्वारा।

◆ एक ही इंजेक्शन सुई का प्रयोग कई व्यक्तियों के लिए करना।

निवारण (Prevention):

◆ संक्रमित रक्त कभी भी ना चढ़ाएं।

◆ एक ही सुई द्वारा नशीली दवा आदि न लें।

◆ दाढ़ी बनाने के लिए नया ब्लेड इस्तेमाल करें।

◆ अनजान व्यक्ति से यौन संबंध से बचें।

अंग विशिष्ट तथा उत्तक – विशिष्ट अभिव्यक्ति (Organ-Specific and Tissue-Specific Manifestation)

रोगाणु विभिन्न माध्यमों से शरीर में प्रवेश करते हैं।

किसी उत्तक या अंग में संक्रमण उसके शरीर में प्रवेश के स्थान पर निर्भर करता है।

◆ यदि रोगाणु वायु के द्वारा नाक में प्रवेश करता है तो संक्रमण फेफड़ों में होता है, जैसे– क्षय रोग (TB) में।

◆ यदि रोगाणु मुंह से प्रवेश करता है, तो संक्रमण आहार नाल में होता है, जैसे- कि खसरा का रोगाणु आहार नाल में और हेपेटाइटिस का रोगाणु यकृत (Liver) में संक्रमण करता है।

◆ विषाणु (Virus) जनन अंगों से प्रवेश करता है लेकिन पूरे शरीर की लसिका ग्रंथियों में फैल जाता है और शरीर के प्रतिरक्षी संस्थान को हानि पहुंचाता है।

◆ इसी तरह मलेरिया का रोगाणु त्वचा के द्वारा प्रवेश करता है, रक्त की लाल रुधिर कोशिकाओं को नष्ट करता है।

◆ इसी प्रकार जापानी मस्तिष्क ज्वर का विषाणु मच्छर के काटने से त्वचा से प्रवेश करता है और मस्तिष्क (Brain) को संक्रमित करता है।

उपचार के नियम (Principles of Treatment):

➲ रोगों के उपचार के उपाय दो प्रकार के हैं–

(i) रोग के लक्षणों को कम करने के लिए उपचार।

◆ पहले दवाई रोग के लक्षण दूर और कम करने के लिए दी जाती है, जैसे– बुखार, दर्द या दस्त आदि

◆ हम आराम करके ऊर्जा का संरक्षण कर सकते हैं जो हमारे स्वास्थ होने में सहायक होगी।

(ii) रोगाणु को मारने के लिए उपचार।

◆ रोगाणु को मारने के लिए एंटीबायोटिक दिया जाता है।

उदाहरण – जीवाणु को मारने के लिए एंटीबायोटिक या मलेरिया परजीवी को मारने के लिए सिनकोना वृक्ष की छाल से प्राप्त कुनैन का प्रयोग किया जाता है।

एंटीबायोटिक (Antibiotics):

◆ एंटीबायोटिक वे रासायनिक पदार्थ है, जो सूक्ष्मजीव (जीवाणु, कवक एवं मोल्ड) के द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं और जो जीवाणु की वृद्धि को रोकते हैं या उन्हें मार देते हैं। जैसे पेनिसिलिन (Penicillin), टेट्रासाइक्लिन (Tetracycline)

◆ बहुत से जीवाणु (Bacteria) अपनी सुरक्षा के लिए एक कोशिका भित्ति बना लेते हैं। एंटीबायोटिक कोशिका भित्ति की प्रक्रिया को रोक देते हैं और जीवाणु मर जाता है। पेनिसिलिन जीवाणु की कोई स्पीशीज में कोशिका भित्ति बनाने की प्रक्रिया को रोक देते हैं और उन सभी स्पीशीज़ को मारने के लिए प्रभाव कारी है।

निवारण के सिद्धांत (Principles of Prevention):

➲ रोगों के निवारण रोकथाम के लिए दो विधियां है–

(i) सामान्य विधि (General Ways):

◆ रोगों का निवारण करने की सामान्य विधि रोगी से दूर करना है।

◆ वायु से फैलने वाले संक्रमण या रोगों से बचने के लिए हमें भीड़ वाले स्थानों पर नहीं जाना चाहिए।

◆ पानी से फैलने वाले रोगों से बचने के लिए पीने से पहले पानी को उबालना चाहिए। इसी प्रकार, रोग वाहक सूक्ष्मजीवों द्वारा फैलने वाले रोगों जैसे- मलेरिया से बचने के लिए अपने आवास के पास मच्छरों को पनपने नहीं देना चाहिए।

(ii) रोग विशिष्ट विधि (Specific Way):

रोगों के रोकथाम का उचित उपाय है प्रतिरक्षीकरण या टीकाकरण- इस विधि में रोगाणु स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में डाल दिए जाते हैं। रोगाणु के प्रवेश करते ही प्रतिरक्षा तंत्र धोखे में आ जाता है और उस रोगाणु से लड़ने वाली विशिष्ट कोशिकाओं का उत्पादन आरंभ कर देता है। इस प्रकार रोगाणु को मारने वाली विशिष्ट कोशिकाएं शरीर में पहले से ही निर्मित हो जाती है और जब रोग का रोगाणु वास्तव में शरीर में प्रवेश करता है तो रोगाणु से यह विशिष्ट कोशिकाएं लड़ती है और उसे मार देती है।

◆ टेटनस, डिप्थीरिया, पोलियो, चेचक, क्षय रोग के लिए टिके उपलब्ध है।

◆ बच्चों को डीपीटी (DPT) का टीका डिप्थीरिया (Diphtheria) कुकर खांसी और टिटनस (Tetanus) के लिए दिया जाता है।

हेपेटाइटिस ‘A’ के लिए टीका उपलब्ध है। 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यह दिया जाना चाहिए। रैबीज का विषाणु, कुत्ते, बिल्ली बंदर तथा खरगोश के काटने से फैलता है। रैबीज का प्रतिरक्षी (Vaccine) मनुष्य तथा पशुओं के लिए उपलब्ध है।

बीमारियां (A few Diseases):

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