ध्वनि (Sound)

ध्वनि

ध्वनि (Sound):

Class 9 Science Chapter 12. ध्वनि (Sound)

पाठ्यपुस्तक NCERT
कक्षा कक्षा 9
विषय विज्ञान
अध्याय अध्याय 12
प्रकरण ध्वनि (Sound)

ध्वनि (Sound) –

(i) ध्वनि हमारे कानों में श्रवण का संवेदन उत्पन्न करती है।

(ii) ध्वनि ऊर्जा का एक रूप है जिससे हम सुन सकते हैं।

(iii) ऊर्जा संरक्षण का नियम ध्वनि पर भी लागू होता है।

(iv) ध्वनि का संचरण तरंगों के रूप में होता है।

ध्वनि का उत्पादन (Production of Sound)- ध्वनि तब पैदा होती है जब वस्तु कंपन करती है या कंपमान वस्तुओं से ध्वनि पैदा होती है।

➲ किसी वस्तु को कंपित करके ध्वनि पैदा करने के लिए आवश्यक ऊर्जा किसी बाहरी स्रोतों द्वारा उपलब्ध कराई जाती है।

उदाहरण –

1. तबला या ड्रम की तनित झिल्ली पर हाथ से मारकर कंपन पैदा करते हैं जिससे ध्वनि पैदा होती है।

2. प्रयोगशाला में कंपमान स्वरित्र द्विभुज (Vibrating tuning fork) से ध्वनि उत्पन्न करते हैं। इसको दिखाने के लिए एक छोटी टेनिस (प्लास्टिक) की गेंद को धागे की सहायता से किसी आधार पर लटकाकर कंपमान स्वरित्र द्विभुज से स्पर्श कराते हैं। गेंद एक बड़े बल के द्वारा दूर धकेल दी जाती हैं।

ध्वनि उत्पन्न होती है – निम्नलिखित तरीकों से-

1. कंपन करते तंतु से (सितार)

2. कंपन करती वायु से (बांसुरी)

3. कंपन करती तनित झिल्ली से (तबला, ड्रम)

4. कंपन करती प्लेटों से (साइकिल की घंटी)

5. वस्तुओं से घर्षण द्वारा

6. वस्तुओं से खुरचकर या रगड़कर (Scratching or Scrubbing)

ध्वनि का संचरण (Propogation of Sound)– वह पदार्थ जिसमें होकर ध्वनि संचारित होती है, माध्यम कहलाता है।

◆ माध्यम ठोस, द्रव या गैस हो सकता है।

◆ जब एक वस्तु कंपन करती है, तब इसके आसपास के वायु के कण भी बिल्कुल वस्तु की तरह कंपन करते हैं और अपनी संतुलित अवस्था से विस्थापित हो जाते हैं।

◆ ये कंपमान वायु के कण अपने आस-पास के वायु कणों पर बल लगाते हैं। अतः वे कण भी अपनी विरामावस्था से विस्थापित होकर कंपन करने लगते हैं।

◆ यह प्रक्रिया माध्यम में तब तक चलती रहती है जब तक ध्वनि हमारे कानों में नहीं पहुंच जाती है।

◆ ध्वनि द्वारा उत्पन्न विक्षोभ माध्यम से होकर गति करता है। (माध्यम के कण गति नहीं करते हैं)

◆ तरंग एक विक्षोभ है जो माध्यम में गति करता है तथा एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ऊर्जा ले जाता है जबकि दोनों बिंदुओं में सीधा संपर्क नहीं होता है।

◆ ध्वनि यांत्रिक तरंगों के द्वारा संचालित होती है।

◆ ध्वनि तरंग अनुदैर्ध्य तरंग है। जब एक वस्तु कंपन करती है तब अपने आस-पास की वायु को संपीडित करती है। इस प्रकार एक उच्च घनत्व या दाब का क्षेत्र बनता है जिसे संपीडन (C) कहते हैं।

◆ संपीडन वह क्षेत्र है जहां माध्यम के कण पास-पास आकर उच्च दाब बनाते हैं।

◆ यह संपीड़न कंपन वस्तु से दूर जाता है।

◆ जब कंपमान वस्तु पीछे की ओर कंपन करती है तब एक निम्न दाब क्षेत्र बनता है जिसे विरलन (R) कहते हैं।

◆ जब वस्तु आगे-पीछे तेजी से कंपन करती है तब हवा में सम्पीडन और विरलन की एक श्रेणी बनकर ध्वनि तरंग बनाती है।

◆ ध्वनि तरंग का संचरण घनत्व परिवर्तन का संचरण है।

ध्वनि संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है –

➲ ध्वनि तरंगे यांत्रिक तरंग हैं, इसके संचरण के लिए माध्यम (हवा, पानी, स्टील) की आवश्यकता होती है।

➲ यह निर्वात में संचरित नहीं हो सकती है।

➲ एक विद्युत घंटी को वायुरुद्ध बेलजार में लटकाकर बेलजार को निर्वात पम्प से जोड़ते हैं।

➲ जब बेलजार वायु से भरा होता है, तब ध्वनि सुनाई देती है। लेकिन जब निर्वात पम्प को चलाकर वायु को बेलजार से निकालकर घंटी बजाते हैं तब ध्वनि सुनाई नहीं देती है।

➲ अतः ध्वनि संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है।

ध्वनि तरंगे अनुदैर्ध्य तरंगें हैं –

➲ वह तरंग जिसमें माध्यम के कण आगे पीछे उसी दिशा में कंपन करते हैं जिस दिशा में तरंग गति करती है, अनुदैर्ध्य तरंग कहलाती है।

◆ जब एक स्लिंकी को धक्का देते तथा खींचते हैं तब संपीडन (स्लिंकी की कुंडलियां पास-पास आ जाती है) तथा विरलन (कुंडलियां दूर-दूर हो जाती है) बनते हैं।

◆ जब तरंग स्लिंकी में गति करती है तब इसकी प्रत्यय कुंडली (छल्ला) तरंग की दिशा में आगे-पीछे एक छोटी दूरी तय करती है। अतः अनुदैर्ध्य तरंग है।

◆ कणों के कंपन की दिशा तरंग की दिशा के समानांतर होती है।

➲ जब स्लिंकी के एक सिरे को आधार से स्थिर करके दूसरे सिरे को ऊपर नीचे तेजी से हिलाते हैं तब यह अनुप्रस्थ तरंग उत्पन्न करती है।

◆ यह तरंग स्लिंकी में क्षैतिज (Horizontal) दिशा में गति करती है जबकि स्लिंकी की कुंडलियां (कण) तरंग की दिशा में लंबवत ऊपर नीचे गति करती है।

◆ इस प्रकार अनुप्रस्थ तरंगों में माध्यम के ऊपर नीचे गति करते हैं और तरंग की दिशा से समकोण (लंबवत) बनाते हैं।

◆ प्रकाश किरणे भी अनुप्रस्थ तरंग है लेकिन उनको संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है।

ध्वनि तरंग की अभिलक्षण (Characteristics of Sound Wave) – ध्वनि तरंग के अभिलक्षण है – तरंगधैर्य (wavelength), आवृत्ति (frequency), आयाम (amplitude), आवर्तकाल (time period) तथा तरंग वेग (velocity)–

➲ जब एक तरंग वायु में संचरण करती है तब हवा का घनत्व तथा दाब अपनी मध्य स्थिति से बदलते हैं।

➲ संपीडन को शिखर या शृंग (Crest) तथा विरलन को गर्त (Trough) से दिखाया जाता है।

➲ संपीडन अधिकतम घनत्व या दाब का क्षेत्र है।

➲ विरलन न्यूनतम घनत्व या दाब का क्षेत्र है।

(i) तरंग धैर्य (Wavelength):

1. ध्वनि तरंग में एक संपीडन तथा एक सटे हुए विरलन की कुल लंबाई को तरंग धैर्य कहते हैं।

2. दो क्रमागत संपीडनों या दो क्रमागत विरलनों के मध्य बिंदुओं के बीच की दूरी को तरंग धैर्य कहते हैं।

◆ तरंग धैर्य को गृह अक्षर लैम्डा (λ) से निरूपित करते हैं । इसका S.I. मात्रक मीटर (m) है।

(ii) आवृत्ति (Frequency):

1. एक सेकंड में उत्पन्न पूर्ण तरंगों की संख्या या एक सेकंड में कुल दोलनों की संख्या को आवृत्ति कहते हैं।

2. एक सेकंड में गुजरने वाले संपीडनों तथा विरलनों की संख्या को भी आवृत्ति कहते हैं।

◆ किसी तरंग की आवृत्ति उस तरंग को उत्पन्न करने वाले कंपित वस्तु की आवृत्ति के बराबर होती है।

◆ आवृत्ति का S.I. मात्रक हर्ट्ज (Hertz प्रतीक Hz) है। आवृत्ति  को ग्रीक अक्षर ‘ v ’ (न्यू) से प्रदर्शित करते हैं।

हर्ट्ज – एक कंपन प्रति प्रति सेकंड के बराबर होता है। आवृत्ति का बड़ा मात्रक किलोहर्ट्ज है। 1 KHz = 1000 Hz

(iii) आवर्तकाल (Time Period):

1. एक कंपन या दोलन को पूरा करने मे लिए गए समय को आवर्तकाल कहते हैं।

2. दो क्रमागत संपीडन या विरलन को एक निश्चित बिंदु से गुजरने में लगे समय को आवर्तकाल कहते हैं।

◆ आवर्तकाल का SI मात्रक सेकंड (s) है। इसे ‘T’ से निरूपित करते हैं।

◆ किसी तरंग की आवृत्ति आवर्तकाल का व्युत्क्रमानुपाती है।

n = 1 / T

(iv) आयाम (Amplitude):

➲ किसी माध्यम के कणों के उनकी मूल स्थिति के दोनों ओर अधिकतम विस्थापन को तरंग का आयाम कहते हैं।

◆ आयाम को ‘A’ से निरूपित करते हैं तथा इसका SI मात्रक मीटर (m) है।

◆ ध्वनि में तारत्व, प्रबलता तथा गुणता जैसे अभिलक्षण पाए जाते हैं।

तारत्व (Pitch):

➲ ध्वनि का तारत्व ध्वनि की आवृत्ति पर निर्भर करता है। यह आवृत्ति के समानुपाती होता है। ज्यादा आवृत्ति, ऊंचा तारत्व। कम आवृत्ति, निम्न तारत्व।

◆ औरतों की आवाज तीक्ष्ण (Shrill) होती है उसका तारत्व ज्यादा होता है जबकि पुरुष की आवाज का तारत्व कम होने से उनके आवाज सपाट होती है।

◆ उच्च तारत्व की ध्वनि में एक इकाई समय में बड़ी बड़ी संख्या में संपीडन तथा विरलन एक निश्चित बिंदु से गुजरते हैं।

➲ निम्न तारत्व – कम आवृत्ति

➲ ज्यादा तारत्व -ज्यादा आवृत्ति

प्रबलता (Loudness):

➲ ध्वनि की प्रबलता ध्वनि तरंगों के आयाम पर निर्भर होती है।

◆ कानों में प्रति सेकंड पहुंचने वाली ध्वनि ऊर्जा के मापन को प्रबलता कहते हैं।

प्रबल ध्वनि → ज्यादा ऊर्जा → ज्यादा आयाम

मृदु ध्वनि → कम ऊर्जा → कम आयाम

◆ प्रबलता को डेसीबल (db) में मापा जाता है।

गुणता (Timbre): किसी ध्वनि की गुणता उस ध्वनि द्वारा उत्पन्न तरंग की आवृत्ति पर निर्भर करती है। यह संगीतमय ध्वनि का अभिलक्षण है। यह हमें समान तारत्व तथा प्रबलता की धमनियों में अंतर करने में सहायता करता है।

टोन – एकल आवृति की ध्वनि को टोन कहते हैं।

स्वर (Note) – अनेक ध्वनियाँ के मिश्रण को स्वर कहते हैं।

शोर (Noise) – शोर सुनने में कर्णप्रिय नहीं होता है।

संगीत (Music) – संगीत सुनने में सुखद होता है और इसकी गुणता अच्छी होती है।

(v) तरंग वेग (Velocity):

एक तरंग द्वारा एक सेकंड में तय की गई दूरी को तरंग का वेग कहते हैं। इस का S.I. मात्रक मीटर / सेकंड (m/s) है।

वेग = चली गई दूरी / लिया गया समय

  v = λ / T ध्वनि की तरंग धैर्य है और यह ‘T’ समय में चली गई है

  V = λ v (v = nu)

वेग = तरंग धैर्य x आवृति → तरंग समीकरण

उदाहरण – एक ध्वनि तरंग का आवर्तकाल 0.053 है। इसकी आवृत्ति क्या होगी ?

हल – दिया गया है T = 0.05 s

               आवृति v = 1 / 0.05

                            = 100 / 5

                            = 20 Hz

अतः ध्वनि तरंग की आवृति 20 Hz है।

विभिन्न माध्यमों में ध्वनि की चाल

(1) ध्वनि की चाल पदार्थ (माध्यम) के गुणों पर निर्भर करती है, जिसमें यह संचारित होती है। यह गैसों में सबसे कम, द्रवों में ज्यादा तथा ठोसों में सबसे तेज होता है।

(2) ध्वनि की चाल तापमान बढ़ने के साथ बढ़ती है।

(3) हवा में आद्रता (नमी) बढ़ाने के साथ ध्वनि की चाल बढ़ती है।

◆ प्रकाश की चाल ध्वनि की चाल से तेज है।

◆ वायु में ध्वनि की चाल 22oC पर 344 m/s है।

ध्वनि बूम – कुछ वायुयान गोलियां तथा रॉकेट आदि पराध्वनिक चाल से चलते हैं। पराध्वनिक का तात्पर्य वस्तु की उस चाल से है, जो ध्वनि की चाल से तेज (ज्यादा) होती है। ये वायु में बहुत तेज आवाज पैदा करती है। जिन्हें प्रघाती तरंगें कहते हैं।

◆ ध्वनि बूम प्रघाती तरंगों द्वारा उत्पन्न विस्फोटक शोर है।

◆ यह जबरदस्त ध्वनि ऊर्जा का उत्सर्जन करता है जो खिड़कियों के शीशे तोड़ सकती है।

ध्वनि का परावर्तन (Reflection of Sound):

प्रकाश की तरह ध्वनि भी जब किसी कठोर सतह से टकराती है तब वापस लौटती है। यह ध्वनि का परावर्तन कहलाता है। ध्वनि भी परावर्तन के समय प्रकाश के परावर्तन के नियमों का पालन करती है

(i) आपतित ध्वनि तरंग, परावर्तित ध्वनि तरंग तथा आपतन बिंदु पर खींचा गया अभिलंब एक ही तल में होते हैं।

(ii) ध्वनि का आपतन कोण हमेशा ध्वनि के परावर्तन कोण के बराबर होता है।

प्रतिध्वनि (Echo): ध्वनि तरंग के परावर्तन के कारण ध्वनि के दोहराव (पुनः सुनना) को प्रतिध्वनि कहते हैं।

◆ हम प्रतिध्वनि तभी सुन सकते हैं जब मूल्य ध्वनि तथा प्रतिध्वनि (परावर्तित ध्वनि) के बीच 0.1 सेकंड का समय अंतराल हो।

◆ प्रतिध्वनि तब पैदा होती है जब ध्वनि किसी कठोर सतह (जैसे ईंट की दीवार, पहाड़ आदि) से परावर्तित होती है। मुलायम सतह ध्वनि को अवशोषित करते हैं।

➲ प्रतिध्वनि सुनने के लिए न्यूनतम दूरी की गणना –

चाल = दूरी / समय, वायु में ध्वनि की चाल = 344 m/s (22oC पर)

समय = 0.1 सेकंड

344 = दूरी / 0.15

दूरी = 344 ms-1 x 0.1 s

दूरी = 34.4 m

◆ अतः श्रोता तथा परावर्तक पृष्ठ के बीच की दूरी 17.2 m (22oC पर)

◆ बादलों की गड़गड़ाहट, बिजली की आवाज के कई परावर्तक पृष्ठों जैसे बादलों तथा भूमि से बार-बार परावर्तन के कारण होती है।

अनुरणन (Reverberation):

(1) किसी बड़े हॉल में, हॉल की दीवारों, छत तथा फर्श से बार-बार परावर्तन के कारण ध्वनि का स्थायित्व (ध्वनि का बने रहना) अनुरणन कहलाता है।

(2) अगर यह स्थायित्व काफी लंबा हो तब धमनी धुंधली विकृत तथा भ्रामक हो जाती है।

किसी बड़े हॉल या सभागार में अनुसरण को कम करने के तरीके –

(1) सभी भवन की छत तथा दीवारों पर संपीडित फाइबर बोर्ड से बने पैनल ध्वनि का अवशोषण करने के लिए लगाए जाते हैं।

(2) खिड़की दरवाजों पर भारी पर्दे लगाए जाते हैं।

(3) फर्श पर कालीन बिछाए जाते हैं।

(4) सीट ध्वनि अवशोषक गुण रखने वाले पदार्थों की बनाई जाती है।

प्रतिध्वनि तथा अनुरणन में अंतर-

ध्वनि के परावर्तन के उपयोग –

(1) मेगाफोन या लाउडस्पीकर, हॉर्न, तूर्य और शहनाई आदि इसी प्रकार बनाए जाते हैं कि वह ध्वनि को सभी दिशाओं में फैलाए बिना एक ही दिशा में भेजते हैं।

◆ इन सभी यंत्रों में शंक्वाकार भाग ध्वनि तरंगों को बार-बार परावर्तित करके श्रोताओं की ओर भेजता है।

◆ इस प्रकार ध्वनि तरंगों का आयाम जुड़ जाने से ध्वनि की प्रबलता बढ़ जाती है।

(2) स्टेथोस्कोप – यह एक चिकित्सा यंत्र है जो मानव शरीर के अंदर हृदय और फेफड़ों में उत्पन्न ध्वनि को सुनने में काम आता है। हृदय की धड़कन की ध्वनि स्टेथोस्कोप की रबर की नली में बारंबार परावर्तित होकर डॉक्टर के कानों में पहुंचती है।

(3.) ध्वनि पट्ट (Sound Board):

(a) बड़े हॉल या सभागार में दीवारों, छत तथा सीटों द्वारा ध्वनि का अवशोषण हो जाता है। अतः वक्राकार ध्वनि पट्टों को वक्ता के पीछे रख दिया जाता है ताकि उसका भाषण श्रोताओं को आसानी से सुनाई दे जाए। ये ध्वनि पट्ट ध्वनि के बहुल परावर्तन पर आधारित है।

(b) कंसर्ट हॉल की छतें वक्राकार बनाई जाती है ताकि परावर्तन के बाद ध्वनि हॉल के सभी भागों में पहुंच जाए।

श्रोता का परिसर (Range of Hearing):

(i) मनुष्य में श्रव्यता का परिसर 20 Hz से 2000 Hz तक होता है। 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे तथा कुत्ते 25 KHz तक की ध्वनि सुन लेते हैं।

(ii) 20 Hz से कम आवृत्ति की ध्वनियों को अवश्रव्य ध्वनि (Infrasonic Sound) कहते हैं।

◆ कंपन करता हुआ सरल लोलक अवश्रव्य ध्वनि उत्पन्न करता है।

◆ गेंडे 5 Hz की आवृत्ति की ध्वनि से एक-दूसरे से संपर्क करते हैं।

◆ हाथी तथा व्हेल अवश्रव्य ध्वनि उत्पन्न करते हैं।

◆ भूकंप प्रघाती तरंगों से पहले अवश्रव्य तरंगे पैदा करते है जिन्हें कुछ जंतु सुनकर परेशान हो जाते हैं।

(iii) 20 KHz से अधिक आवृत्ति की ध्वनियों का पराश्रव्य ध्वनि (Ultrasonic waves) या पराध्वनि कहते हैं। कुत्ते, डॉल्फिन, चमगादर, मॉरपॉइज तथा चूहे ध्वनि सुन सकते हैं। कुत्ते तथा चूहे पराध्वनि उत्पन्न करते हैं।

श्रवण सहायक युक्ति (Hearing Aids):

यह बैटरी चालित इलेक्ट्रॉनिक मशीन है जो सुनने वाले लोगों द्वारा प्रयोग की जाती है। माइक्रोफोन ध्वनि को विद्युत संकेतों में बदलता है जो एंप्लीफायर द्वारा प्रवर्धित हो जाते हैं। ये प्रवर्धित संकेत युक्ति के स्पीकर को भेजे जाते हैं। स्पीकर प्रवर्धित संकेतों को ध्वनि तरंगों में बदल कर कान को भेजता है जिससे साफ सुनाई देता है।

पराध्वनि के अनुप्रयोग (Application of ultrasound):

(i) इसका उपयोग उद्योगों में धातु के इलाकों में दरारों या अन्य दोषों का पता लगाने के लिए (बिना उन्हें नुकसान पहुंचाए) किया जाता है।

(ii) यह उद्योगों में वस्तुओं के उन भागों को साफ करने में उपयोग की जाती है जिनका पहुंचना कठिन होता है; जैसे– सर्पिलाकार नली, विषम आकार की मशीन आदि।

(iii) पराध्वनि का उपयोग मानव शरीर के आंतरिक अंगों जैसे यकृत, पित्ताशय, गर्भाशय, गुर्दे और हृदय की जांच करने में क्या जाता है।

(iv) इकोकार्डियोग्राफी (ECG) – इन तरंगों का उपयोग हृदय की गतिविधियों को दिखाने तथा इसका प्रतिबिंब बनाने में किया जाता है। इसे इकोकार्डियोग्राफी कहते हैं।

(v) अल्ट्रासोनोग्राफी (Ultrasonography) – वह तकनीक जो शरीर के आंतरिक अंगों का प्रतिबिंब पराध्वनि तरंगों की प्रतिध्वनियों द्वारा बनाती है, अल्ट्रासोनोग्राफी कहलाता है।

(vi) पराध्वनि का उपयोग गुर्दे की छोटी पथरी को बारीक कणों में तोड़ने के लिए किया जाता है।

सोनार (Sonar):

सोनार शब्द साउंड नेविगेशन एण्ड रेंजिंग (Sound Navigation and Ranging) से बना है।

◆ सोनार एक युक्ति है जो पानी के नीचे पिण्डों की दूरी, दिशा तथा चाल मापने के लिए प्रयोग की जाती है।

◆ सोनार में एक प्रेषित तथा एक संसूचक होती है जो जहाज की तली में लगा होता है।

◆ प्रेषित पराध्वनि तरंगे उत्पन्न करके प्रेषित करता है।

◆ ये तरंगे पानी में चलती है, समुद्र के तल में पिण्डों से टकराकर परावर्तित होकर संसूचक द्वारा ग्रहण कर ली जाती है और विद्युत संकेतों में बदल ली जाती है।

◆ यह युक्ति पराध्वनि तरंगों द्वारा जहाज से समुद्र तल तक जाने तथा वापस जहाज तक आने में लिए गए समय को नाप लेती है।

◆ इस समय का आधा समय पराध्वनि तरंगों द्वारा जहाज से समुद्र तल तक जाने में लिया जाता है।

◆ यदि पराध्वनि के प्रेषण संसूचन का समय अंतराल ‘t’ है। समुद्र जल में ध्वनि की चाल ‘v’ है तब तरंग द्वारा तय की गई दूरी = 2 d

                                            2d = vπt

यह विधि प्रतिध्वनि परास कहलाती है।

सोनार की कार्यविधि

सोनार का उपयोग समुद्र की गहराई मापने, जल के नीचे चट्टानों, घाटियों, पनडुब्बि, हिम शैल तथा डूबे हुए जहाज का पता लगाने में किया जाता है।

चमगादड़ अंधेरी रात में उच्च तारत्व की पराध्वनि तरंगे उत्सर्जित करते हुए उड़ती है जो अवशेषों या कीटों से परावर्तित होकर चमगादड़ के कानों तक पहुंचते हैं। परावर्तित स्पंदो की प्रकृति से चमगादड़ को पता चलता है कि अवरोध या कीट कहां है और किस प्रकृति के हैं।

मानव कर्ण की संरचना (Structure of Human Ear):

◆ मानव कर्ण तीन हिस्सों से बना है – बाह्य कर्ण, मध्य कर्ण, अन्तः कर्ण

◆ कान संवेदी अंग है जिनकी सहायता से हम ध्वनि को सुन पाते हैं।

बाह्य कान को कर्ण पल्लव कहते हैं, यह आस-पास से ध्वनि इकट्ठा करता है।

◆ यह ध्वनि श्रवण नलिका से गुजरती है।

◆ श्रवण नलिका के अंत पर एक पतली लचीली झिल्ली कर्ण पटक या कर्ण पटह झिल्ली होती है।

मध्य कर्ण में तीन हड्डियां – मुग्दरक (hammer), निहाई (anviland) और वलयक (stirrup) एक दूसरे से जुड़ी होती है।

◆ मुग्दरक का स्वतंत्र हिस्सा कर्ण पट्ट से तथा वलयक का अंतकर्ण के अंडाकार छिद्र की झिल्ली से जुड़ा होता है।

अंतः कर्ण में एक मुड़ी हुई नलिका कर्णावर्त (Cochlea) होती है जो अंडाकार छिद्र से जुड़ी होती है।

◆ कर्णावर्त में एक द्रव भरा होता है जिसमें तंत्रिका कोशिका होती है।

◆ कर्णावर्त का दूसरा सिरा श्रवण तंत्रिका से जुड़ा होता है जो मस्तिष्क को जाती है।

कार्य विधि – जब ध्वनि तरंग का संपीडन कर्ण पटह पर टकराता है तब कर्ण पटह के बाहर का दबाव बढ़ जाता है और कर्ण पट्ट को अंदर की ओर दबाता है जबकि विरलन के समय कर्ण पट्ट बाहर की तरफ गति करता है। इस प्रकार कर्ण पटह अंदर, कर्ण पटह अंदर-बाहर कथन करना शुरू कर देता है।

◆ ये कंपन तीन हड्डियों द्वारा कई गुना बढ़ा दिये जाते हैं । मध्य कर्ण ध्वनि तरंगों से प्राप्त इन प्रवर्धित (amplified) दाब परिवर्तनों को अंतःकर्ण को भेज देता है।

◆ अंतः कर्ण में ये दाब परिवर्तन कर्णावर्त के द्वारा विद्युत संकेतों में बदल दिए जाते हैं।

◆ ये विद्युत संकेत श्रवण तंत्रिका के द्वारा मस्तिष्क को भेज दिए जाते हैं और मस्तिष्क इनकी ध्वनि रूप में व्याख्या करता है।

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