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Class 10 Science Chapter 6 जैव प्रक्रम
पाठ्यपुस्तक | NCERT |
कक्षा | कक्षा-10 |
विषय | विज्ञान |
अध्याय | अध्याय 6 |
प्रकरण | जैव प्रक्रम |
जैव प्रक्रम (Life Processes):
वे सभी प्रक्रम (processes) जो संयुक्त रूप से जीव के अनुरक्षण का कार्य करते हैं जैव प्रक्रम कहलाते हैं।
![जैव प्रक्रम](https://www.seemanchalacademy.com/wp-content/uploads/2021/06/1_Class-10_Science-Chapter_6.png)
1. पोषण (Nutrition):
भोजन ग्रहण करना, पचे भोजन का अवशोषण एवं शरीर द्वारा अनुरक्षण (maintenance) के लिए उसका उपयोग, पोषण कहलाता है।
पोषण के आधार पर जीवों को दो समूह में बांटा जा सकता है।
![जैव प्रक्रम- पोषण (Nutrition):](https://www.seemanchalacademy.com/wp-content/uploads/2021/06/2_Class-10_Science-Chapter_6.png)
स्वपोषी पोषण (Autotropic Nutrition):
स्वपोषी पोषण हरे पौधों में तथा कुछ जीवाणुओं जो प्रकाश संश्लेषण कर सकते हैं, में होता है।
प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis):
यह वह प्रक्रम है जिसमें स्वपोषी बाहर से लिए पदार्थों को उर्जा संक्षिप्त रूप में परिवर्तित कर देता है। ये पदार्थ कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल के रूप में लिए जाते हैं, जो सूर्य के प्रकाश तथा क्लोरोफिल की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित कर दिए जाते हैं।
![जैव प्रक्रम- प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis)](https://www.seemanchalacademy.com/wp-content/uploads/2021/06/3_Class-10_Science-Chapter_6.png)
प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री:
◙ सूर्य की प्रकाश
◙ क्लोरोफिल
◙ कार्बन डाइऑक्साइड- स्थलीय पौधे इसे वायुमंडल से प्राप्त करते हैं।
◙ जल- स्थलीय पौधे, जड़ों द्वारा मिट्टी से जल का अवशोषित करते हैं।
प्रकाश संश्लेषण के दौरान निम्नलिखित घटनाएं होती है।
◙ क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करना।
◙ प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित करना तथा जल अणुओं का हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन में अपघटन।
◙ कार्बन डाईऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन।
रंध्र (Stomata):
पत्ती की सतह पर जो सूक्ष्म छिद्र होते हैं, उन्हें रंध्र (stomata) कहते हैं।
रंध्र के प्रमुख कार्य (Functions):
- प्रकाश संश्लेषण के लिए गैसों का (जैसे O2 , CO2 ) अधिकांश आदान-प्रदान इन्हीं छिद्रों के द्वारा होता है।
- वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया में जल (जलवाष्प के रूप में) रंध्र द्वारा निकल जाता है।
![जैव प्रक्रम- रंध्र के प्रमुख कार्य](https://www.seemanchalacademy.com/wp-content/uploads/2021/06/6_Class-10_Science-Chapter_6.png)
विषमपोषी पोषण (Heterotrophic Nutrition):
![जैव प्रक्रम- विषमपोषी पोषण (Heterotrophic Nutrition)](https://www.seemanchalacademy.com/wp-content/uploads/2021/06/7_Class-10_Science-Chapter_6.png)
I. अमीबा में पोषण:
![जैव प्रक्रम- अमीबा में पोषण](https://www.seemanchalacademy.com/wp-content/uploads/2021/06/8_Class-10_Science-Chapter_6.png)
II. पैरामीशियम में पोषण:
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III. मनुष्य में पोषण (Nutrition in Human Beings):
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![जैव प्रक्रम](https://www.seemanchalacademy.com/wp-content/uploads/2021/06/11_Class-10_Science-Chapter_6.png)
![जैव प्रक्रम- मानव पाचन तंत्र](https://www.seemanchalacademy.com/wp-content/uploads/2021/06/12_Class-10_Science-Chapter_6.png)
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2. श्वासन (Respiration):
पोषण प्रक्रम के दौरान ग्रहण की गई खाद्य सामग्री का उपयोग कोशिकाओं में होता है जिससे विभिन्न जैव प्रक्रमों के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है। ऊर्जा उत्पादन के लिए कोशिकाओं में भोजन के विखंडन को कोशिकीय श्वसन कहते हैं।
![जैव प्रक्रम- ग्लूकोज का विखंडन](https://www.seemanchalacademy.com/wp-content/uploads/2021/06/14_Class-10_Science-Chapter_6.png)
![जैव प्रक्रम](https://www.seemanchalacademy.com/wp-content/uploads/2021/06/15_Class-10_Science-Chapter_6.png)
मानव श्वसन तंत्र (Human Respiratory System):
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![जैव प्रक्रम- मानव श्वसन तंत्र](https://www.seemanchalacademy.com/wp-content/uploads/2021/06/17_Class-10_Science-Chapter_6.png)
![जैव प्रक्रम](https://www.seemanchalacademy.com/wp-content/uploads/2021/06/18_Class-10_Science-Chapter_6.png)
◙ अंत श्वसन: सांस द्वारा वायुमंडल से गैसों को अंदर ले जाना।
◙ उच्छ वसन: फेफड़ों से वायु या गैसों को बाहर निकालना।
◙ स्थलीय जीव: श्वसन के लिए वायुमंडल से ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं।
◙ जो जीव जल में रहते हैं: वे जल में विलय ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं।
कूपिका (alveolus), रक्त (blood) व ऊत्तकों (tissues) के बीच गैसों का आदान प्रदान:
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3. संवहन (Transportation):
मनुष्य में भोजन, ऑक्सीजन व अन्य आवश्यक पदार्थों की निरंतर आपूर्ति करने वाला तंत्र, संवहन तंत्र कहलाता है।
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![जैव प्रक्रम](https://www.seemanchalacademy.com/wp-content/uploads/2021/06/22_Class-10_Science-Chapter_6.png)
![जैव प्रक्रम- मानव शरीर में रुधिर परिसंचरण दर्शाने के लिए रेखाचित्र](https://www.seemanchalacademy.com/wp-content/uploads/2021/06/23_Class-10_Science-Chapter_6.png)
मानव हृदय एक पंप की तरह होता है जो सारे शरीर में रुधिर का परिसंचरण करता है।
अलिंद की अपेक्षा निलय की पेशीय मोटी होती है क्योंकि निलय को पूरे शरीर में अधिक रक्तचाप से रुधिर भेजना होता है।
![जैव प्रक्रम- मानव हृदय का अनुप्रस्थ काट](https://www.seemanchalacademy.com/wp-content/uploads/2021/06/24_Class-10_Science-Chapter_6.png)
हृदय में उपस्थित वाल्व रुधिर प्रवाह को उलटी दिशा में रोकना सुनिश्चित करते हैं।
लसीका (Lymph):
एक तरल उत्तक है, जो रुधिर प्लाज्मा की तरह ही है, लेकिन इसमें अल्प मात्रा में प्रोटीन होते हैं। लसीका वाहन में सहायता करता है।
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जाइलम (Xylem):
जाइलम मृदा से प्राप्त जल और खनिज लवणों का वहन करता है।
फ्लोएम (Phloem):
फ्लोएम पत्तियों द्वारा प्रकाश संश्लेषण उत्पादों को पौधों के अन्य भागों तक वाहन करता है।
जड़ व मृदा के मध्य आयन सांद्रण में अंतर के चलते जल मृदा से जड़ों में प्रवेश कर जाता है तथा इसी के साथ एक जल स्तंभ निर्माण हो जाता है, जो कि जल को लगातार ऊपर की ओर धकेलता है। यही दाब जल को ऊंचे वृक्ष के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है।
यही जल पादप के वायवीय भागों में द्वारा वाष्प के रूप में वातावरण में विलीन हो जाता है, यह प्रकरण वाष्पोत्सर्जन कहलाता है।
इस प्रक्रम द्वारा पौधों को निम्न रूप में सहायता मिलती है।
◙ जल के अवशोषण एवं जड़ से पत्तियों तक जल तथा मिले खनिज लवणों में उपरी मुखी गति में सहायक।
◙ पौधों में ताप नियमन में भी सहायक है।
भोजन तथा दूसरे पदार्थों का स्थानांतरण (पौधों में):
◙ प्रकाश संश्लेषण के विलेय उत्पादों का वाहन स्थानांतरण कहलाता है। जो कि फ्लोएम उत्तक द्वारा होता है।
◙ स्थानांतरण पत्तियों से पौधों के शेष भागों में ऊपरीमुखी तथा अधोमुखी दोनों दिशाओं में होता है।
◙ फ्लोएम द्वारा स्थानांतरण ऊर्जा के प्रयोग से पूरा होता है। अतः सुक्रोज फ्लोएम उत्तक में ए. टी. पी. उर्जा से परासरण बल द्वारा स्थानांतरित होता है।
4. उत्सर्जन (Excretion):
मानव में उत्सर्जन (Excretion in Human Beings):
वह जैव प्रक्रम जिसमें जीवो में उपापचयी क्रियाओं में जनित हानिकारक नाइट्रोजन युक्त पदार्थों का निष्कासन होता है उत्सर्जन कहलाता है।
एक कोशिकीय जीव इन अवशिष्ट पदार्थों को शरीर की सतह से जल में विसरित कर देते हैं।
मानव उत्सर्जन तंत्र में उपस्थित अंग:
![जैव प्रक्रम- मानव उत्सर्जन तंत्र में उपस्थित अंग](https://www.seemanchalacademy.com/wp-content/uploads/2021/06/28.1_Class-10_Science-Chapter_6.png)
◙ वृक्क में मूत्र बनने के बाद मूत्रवाहिनी से होता हुआ मूत्राशय में एकत्रित होता है।
◙ मूत्र बनने का उद्देश्य रुधिर में से हानिकारक अपशिष्ट पदार्थों को छानकर बाहर करना है।
वृक्क में मूत्र निर्माण प्रक्रिया:
वृक्क की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई वृक्काणु (Nephron) कहलाती है। वृक्काणु के मुख्य भाग इस प्रकार हैं।
- कोशिका गुच्छ (Glomerulus)
- बोमन संपुट (Bowman Capsule)
- नलिकाकार भाग (Distal Convoluted Tubule)
- संग्राहक वाहिनी (Collecting Tubule)
वृक्क में उत्सर्जन की क्रियाविधि:
![जैव प्रक्रम- वृक्काणु की संरचना](https://www.seemanchalacademy.com/wp-content/uploads/2021/06/30_Class-10_Science-Chapter_6-2.png)
1. कोशिका गुच्छ निस्यंदन (Glomerular Filtration): जब वृक्क -धमनी की शाखा वृक्काणु में प्रवेश करती है, तब जल, लवण, ग्लूकोज, अमीनों अम्ल व अन्य नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थ, कोशिका गुच्छ में से छनकर बोमन संपुष्ट (Bowman Capsule) में आ जाते हैं।
2. वर्णात्मक पुनः अवशोषण (Tubular Reabsorption): वृक्काणु के नलिकाकार भाग में शरीर के लिए उपयोगी पदार्थों, जैसे ग्लूकोज, अमीनों अम्ल व जल का पुनः अवशोषण होता है।
3. नलिका स्रावण (Secretion): यूरिया, अतिरिक्त जल व लवण जैसे उत्सर्जी पदार्थ वृक्काणु के नलिकाकार भाग के अंतिम सिरे में रह जाते हैं व मूत्र का निर्माण करते है। वहाँ से मूत्र संग्राहक वाहिनी व मूत्रवाहिनी से होता हुआ मूत्राशय में अस्थायी रूप से संग्रहीत रहता है तथा मूत्राशय के दाब द्वारा मूत्रमार्ग से बाहर निकलता है।
कृत्रिम वृक्क (Artificial Kidney):
कृत्रिम वृक्क: यह एक युक्ति है जिसके द्वारा रोगियों के रुधिर (blood) में से कृत्रिम वृक्क की मदद से नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थों का निष्कासन किया जाता है। इस प्रक्रिया को अपोहन (dialysis) कहते हैं।
प्रायः एक स्वस्थ व्यस्क में प्रतिदिन 180 लीटर आरंभिक निस्यंदन (initial filtration) वृक्क में होता है। जिसमें से उत्सर्जित मूत्र का आयतन 1 या 2 लीटर है। शेष निस्यंदन वृक्क नलिकाओं (kidney tubules) में पुनः अवशोषित (reabsorb) हो जाता है।
पादप में उत्सर्जन (Excretion in Plants):
◙ वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया द्वारा पादप अतिरिक्त जल से छुटकारा पाते हैं।
◙ बहुत से पादप अपशिष्ट पदार्थ कोशिकीय रिक्तिका में संचित रहते है।
◙ अन्य अपशिष्ट पदार्थ ( उत्पाद ) रेजिन तथा गोंद के रूप में पुराने जाइलम में संचित रहते है।
◙ पादप कुछ अपशिष्ट पदार्थों को अपने आसपास मृदा में उत्सर्जित करते हैं।